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बंगाल की मीठी दही की तरह रैलियां और सभाएं भी संस्कृति का हिस्सा है : हाई कोर्ट

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कोलकाता, 14 मार्च (Udaipur Kiran) । कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सार्वजनिक रैलियों और बैठकों को पश्चिम बंगाल के मशहूर मिष्टी दही’, लुची और आलू पोस्तो जैसे व्यंजनों की तरह ही बंगाल की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताया है। कोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार के कर्मचारियों के एक संगठन को राज्य सचिवालय नवान्न के पास मार्च निकालने की अनुमति दी। कोर्ट ने कहा कि इन सब चीजों पर रोक नहीं लगा सकते। ये लोगों के अधिकार हैं।

लुची (मैदा से बनी पूरी), मिष्टी दोई’ (मीठा दही) और आलू पोस्तो (पोस्ते दानों के साथ पकाया गया आलू) बंगाल के सुप्रसिद्ध व्यंजन हैं।

मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगणनम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारियों के एक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन, राज्य समन्वय समिति द्वारा गुरुवार को राज्य सचिवालय नवान्न तक रैली की अनुमति देने वाले एकल पीठ के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। साथ ही निर्देश दिया कि वे सड़क के एक ही तरफ रैली करेंगे और यातायात के संचालन को बाधित नहीं करेंगे।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “अन्य चीजों के अलावा, मिष्टी दोई, लुची और आलु पोस्तो बंगाल की संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा हैं, इसी तरह ऐसा प्रतीत होता है कि सार्वजनिक रैलियां, सभाएं आदि भी इस संस्कृति का हिस्सा हैं।” उन्होंने कहा कि हर बंगाली जन्मजात वक्ता होता है और यह संस्कृति और विरासत से भरा राज्य है। (Udaipur Kiran) /ओम प्रकाश

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