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राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग : बैंक और बीमा कंपनी पर तीन लाख का हर्जाना

जोधपुर, 23 मार्च (Udaipur Kiran) । राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने बैंक बीमा कंपनी पर तीन लाख रुपये हर्जाना लगाते हुए अपने महत्वपूर्ण फैसले में यह व्यवस्था दी है कि पूर्व अस्तित्व बीमारी के आधार पर मेडिक्लेम दावा तब तक खारिज नहीं किया जा सकता,जब तक ऐसी बीमारी के इलाज के दस्तावेज बीमा कंपनी पेश नहीं कर दें। उन्होंने यह भी निर्धारित किया है कि अलग अलग बीमा पॉलिसी के दावे को एक साथ जोडक़र आयोग का क्षेत्राधिकार निर्धारित किया जा सकता है।

आयोग के अध्यक्ष देवेंद्र कच्छवाहा और न्यायिक सदस्य निर्मल सिंह मेडतवाल तथा सदस्य संजय टाक ने बीमा कंपनी द्वारा दावा खारिज निर्णय को अपास्त करते हुए बैंक को निर्देश दिए कि परिवादी की ओर से पति की मृत्यु के बाद जमा कराई गई ऋण किस्त 64 लाख रुपये मय 6 फीसदी ब्याज 45 दिन में लौटाए और ऐसा नहीं किए जाने पर 9 फीसदी ब्याज से रिफंड करना होगा और बीमा कंपनी बैंक को बकाया ऋण राशि अदा करें और प्रतिवादी 15 हजार रुपये परिवाद व्यय भी अदा करें।

यह है परिवाद :

रेखा विक्रम जैन ने अधिवक्ता अनिल भंडारी के माध्यम से परिवाद पेश कर कहा कि फैडरल बैंक,मुंबई से परिवादी के पति ने फरवरी 2019 में 61 लाख और 34 लाख रुपये के आवासीय ऋण लिए थे और बैंक ने इसी राशि की दो बीमा पॉलिसी मैक्स बूपा हैल्थ इंश्योरेंस कंपनी से करवाई,ताकि अनहोनी होने पर बैंक को ऋण वसूली में दिक्कत नहीं हो। दिसंबर 2019 में परिवादी के पति के पैर में सूजन होने पर उन्हें ग्लोबल हॉस्पिटल,मुंबई में भर्ती किया गया और दौराने इलाज 6 जनवरी को उनकी मृत्यु हो गई। बीमा कंपनी के यहां दावा पेश किए जाने पर दोनों दावे यह कहकर खारिज कर दिए कि अस्पताल के दस्तावेज से यह साबित है कि बीमाधारी को 2015 में पीलिया व लीवर की बीमारी होने के बावजूद बीमा पॉलिसी लेते वक्त इसे छिपाया था। अधिवक्ता भंडारी ने बहस करते हुए कहा कि परिवादी के पति को लीवर की बीमारी अप्रैल 2019 में हुई और अस्पताल के दस्तावेज में 2015 गलत अंकन किया गया है। उन्होंने कहा कि बीमा कंपनी 2015 के इलाज के कोई भी दस्तावेज पेश नहीं कर पाई है सो परिवादी के पति की मृत्यु के बाद की बकाया ऋण किस्तें बीमा कंपनी को अदा करनी थी,लेकिन बैंक प्रबंधन ने परिवादी को मजबूर कर अभी तक 64 लाख रुपये परिवादी से वसूल किए है,वे ब्याज सहित वापिस दिलाए जाएं। उन्होंने कहा कि मैक्स बूपा का नाम परिवर्तन नीवा बूपा 5 जुलाई 2021 से हुआ तो यह समझ से परे है कि नीवा बूपा की पॉलिसी शर्तो के आधार पर दावा कैसे खारिज किया गया। बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि मरीज को बीमा पॉलिसी लिए जाने से पहले से बीमारी होने से दावे सही खारिज किए गए।

बैंक और बीमा कंपनी को 15 हजार रुपए परिवाद व्यय भी अदा करने का आदेश :

राज्य उपभोक्ता आयोग ने बैंक और बीमा कंपनी पर क्रमश: 1 लाख और दो लाख रुपये हर्जाना लगाते हुए परिवाद मंजूर करते हुए कहा कि ग्लोबल अस्पताल के दस्तावेज में स्पष्ट अंकित किया है कि बीमारी पहले से हो,उसके कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि बीमा कंपनी परिवादी के पति के वर्ष 2015 के इलाज के कोई भी सबूत पेश करने में नाकाम रही, जबकि इसे साबित करने का भार बीमा कंपनी पर था,सो यह नहीं माना जा सकता कि मरीज को बीमा पॉलिसी लिए जाने से पूर्व कोई बीमारी हो। उन्होंने कहा कि मृत्यु और दावा कागजात पेश किए जाने तक नीवा बूपा बीमा कंपनी अस्तित्व में ही नहीं थी तो उसकी पॉलिसी शर्तों से कैसे पाबंद किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि परिवादी के दोनों दावों का अनुतोष मिलाकर इस आयोग का क्षेत्राधिकार यह परिवाद सुनने का है। उन्होंने कहा कि परिवादी के पति की मृत्यु के बाद बकाया ऋण किस्त बीमा कंपनी द्वारा बैंक को चुकानी थी सो परिवादी द्वारा चुकाई गई समस्त राशि बैंक 45 दिन में 6 फीसदी ब्याज सहित परिवादी को रिफंड करें और इस अवधि में नहीं लौटाने पर बैंक 9 फीसदी ब्याज अदा करेगी।उन्होंने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि दावा राशि बैंक को अदा करें। उन्होंने बैंक और बीमा कंपनी को 15 हजार रुपये परिवाद व्यय भी अदा करने का आदेश दिया।

(Udaipur Kiran) /संदीप

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