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पवित्र रमजान पर फिलिस्तीनी मजलूमों एवं युद्ध समाप्ति के लिए विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन

पवित्र रमजान करीम 1445 हिजरी आरम्भ होने के अवसर पर फिलिस्तीनी मजलूमों एवं युद्ध समाप्ति के लिए विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन।
पवित्र रमजान करीम 1445 हिजरी आरम्भ होने के अवसर पर फिलिस्तीनी मजलूमों एवं युद्ध समाप्ति के लिए विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन।

पवित्र रमजान करीम 1445 हिजरी पर दिया विश्व शांति पर्यावरण संरक्षण जलवायु परिवर्तन की रोकथाम एवं सामाजिक सद्भावना का संदेश।

पवित्र रमजान 1445 हिजरी आरंभ होने एवं फिलिस्तीन में मजलूमों के समर्थन एवं युद्ध समाप्ति के लिए सत्याग्रह भवन में विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन मंगलवार को किया गया। इस अवसर पर सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डाॅ एजाज अहमद अधिवक्ता ने कहा कि पवित्र रमजान करीम 1445 हिजरी का आरंभ हो चुका है। पैगंबर हज़रत मुहम्मद के हिजरत करने यानी मक्का से मदीना जाने (622 ईस्वी) के दूसरे साल यानी साल 624 ईस्वी में इस्लाम में रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने को फ़र्ज़ अथवा अनिवार्य क़रार दिया गया था। उसके बाद से ही पूरी दुनिया में बिना किसी बदलाव के रोज़ा रखा जाता रहा है। रोज़ा इस्लाम के पांच प्रमुख धार्मिक स्तंभों में से एक है। बाक़ी चार क्रमशः एक ईश्वर में आस्था, नमाज़, ज़कात एवं हज हैं।

उन्होंने कहा जिस साल रोज़ा को फ़र्ज़ (अनिवार्य) बनाया गया था उसके दो साल पहले वर्ष 622 में इस्लाम के नबी मक्का से सहाबियों (अपने साथियों) को लेकर मदीना चले गए थे। जिसे हजरत का वर्ष कहते हैं। इसी दिन से हिजरी वर्ष आरंभ हुआ था। इस्लाम में इसे हिजरत कहा जाता है. हिजरत की तारीख़ से ही मुसलमानों के वर्ष की गिनती शुरू की गई ।

डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता ने कहा कि हिजरी द्वितीय वर्ष के दौरान रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने को मुसलमानों के धार्मिक ग्रन्थ क़ुरान के ज़रिए फ़र्ज़ या अनिवार्य किया गया था।क़ुरान की जिस आयत (श्लोक) के ज़रिये रोज़ा को फ़र्ज़ किया गया है उसमें कहा गया है कि पहले की विभिन्न जाति समूहों पर भी रोज़ा फ़र्ज़ था।इससे यह समझा जा सकता है कि विभिन्न जातियों में पहले से ही रोज़ा रखने का प्रचलन था, हालांकि शायद उसका स्वरूप अलग था. मसलन यहूदी अब भी रोज़ा रखते हैं, कई अन्य जातियों में भी ऐसी परंपरा है.

इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि उस समय मक्का या मदीना में रहने वाले कुछ ख़ास तारीख़ों पर रोज़ा रखते थे. कई लोग आशूरा यानी मोहर्रम महीने की दसवीं तारीख़ को रोज़ा रखते थे. इसके अलावा कुछ लोग चंद्र मास की 13, 14 और 15 तारीख़ को रोज़ा रखते थे. अन्य पैगंबरों के लिए रोज़ा फ़र्ज़ था. लेकिन वह एक महीने तक चलने वाला नहीं बल्कि आंशिक था. इस्लाम के नबी पैगंबर हजरत मोहम्मद भी मक्का में रहने के दौरान चंद्र वर्ष में तीन दिनों के लिए उपवास रखते थे. यह साल में 36 दिन होता है. इसका मतलब यह है कि वहां पहले से ही रोज़ा रखने की परंपरा थी.

इस्लामी इतिहास का ज़िक्र करते हुए उनका कहना था कि आदम के समय महीने में तीन दिन और नबी दाऊद के समय एक-एक दिन के अंतराल पर रोज़ा रखा जाता था। नबी मूसा ने शुरुआत में तुरा की पहाड़ी पर 30 दिन रोज़ा रखा था। बाद में और दस दिन जोड़ कर उन्होंने लगातार 40 दिन रोज़ा रखा था।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद ने वर्ष 622 में मक्का से मदीना जाकर हिजरत करने के बाद मदीना के लोगों को आशूरा ( मोहर्रम महीने की दसवीं तारीख़) के दिन रोज़ा रखते देखा था. उसके बाद वह भी उसी तरह रोज़ा रखने लगे।

(Udaipur Kiran) / अमानुल हक़ /चंदा

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