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मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शरिया पर गृह मंत्री के बयान को बताया भ्रामक

नई दिल्ली, 23 मार्च (Udaipur Kiran) । ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने समान नागरिक संहिता के संबंध में शाह के बयान को भ्रामक करार दिया है।

दरअसल, हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू के दौरान अमित शाह से पूछा गया था कि क्या मुसलमानों को शरिया और हदीस के तरीके से रहने का हक नहीं है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘ये एक तरह की भ्रांति है। देश का मुस्लिम शरिया और हदीस के हिसाब से 1937 से नहीं रह रहा है। अंग्रेजों ने जब मुस्लिम पर्सनल लॉ बनाया। उसमें से क्रिमिनल एलिमेंट क्यों निकाल दिया। ऐसे होता तो चोरी करने वालों के हाथ काट दो। दुष्कर्म करने वालों को बीच सड़क पर पत्थर मारकर मार देना चाहिए। कोई मुसलमान सेविंग अकाउंट नहीं खोल सकता, ब्याज नहीं ले सकता है, लोन नहीं ले सकता है। शरिया और हदीस से जीना है तो पूरी तरह से जीना चाहिए। सिर्फ चार शादी करने के लिए शरिया और हदीस क्यों याद आता है।”

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि यह कानून आपराधिक सजा के लिए लागू किया जाता है। समान नागरिक संहिता से इसका कोई लेना देना नहीं है। यह कानून उस देश में लागू किया जाता है जहां पूर्ण इस्लामी शरिया लागू है। रहमानी ने ध्यानाकर्षण कराते हुए कहा कि यह सभी चीजें केवल इस्लामी शरिया कानून में नहीं हैं बल्कि यह सभी धर्मों का सामान्य कानून है। मनुस्मृति में ही चोरी और व्यभिचार की सज़ा अंग-भंग बताई गई है। व्यभिचार की सज़ा के रूप में महिला को भूखे कुत्तों के आगे फेंक देने की बात कही गई है ताकि वे उसे काटकर खा जाएं। व्यभिचारी पुरुष को आग से गरम किए हुए लोहे के बिछौने पर डाल दिया जाए ताकि उसे जलाकर मार डाला जाए, यदि वह बलपूर्वक व्यभिचार करे तो उसका पुरुष अंग काट दिया जाए, हालाँकि ब्राह्मण को इन दंडों से छूट दी गई है, इसके लिए उसका सिर मुंडवाना ही काफी होगा। इसी प्रकार वेदों में भी सूदखोरी को प्रतिबंधित किया गया है। हिंदू धर्म और इस्लाम सहित दुनिया भर में जितने भी धर्म हुए हैं उनमें नैतिक मूल्यों को शामिल किया गया है। इसे बहुत महत्व दिया गया है और उन्हें स्थापित करने के लिए दो चीजें की गई हैं, एक ऐसा वातावरण बनाना, जिससे लोगों के लिए अपराध से बचना आसान हो, दूसरा यह कि दंड इतना कठोर रखा जाए कि लोग डर जाएं। इसलिए ऐसे उदाहरण देकर इस्लामी शरीयत को महज बदनाम करना और पक्षपातपूर्ण है।

मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि इस्लाम में कुछ अपराधों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान तो है लेकिन इसके लिए अपराध से बचने के लिए एक सहयोगी माहौल भी बनाया गया है। इस्लाम में शराब पर भी कड़ी सज़ा दी गई है लेकिन जहां संपूर्ण इस्लामी शरीयत लागू होगी वहां न तो शराब की फैक्टरियां होंगी और न ही वाइन बार। इस्लाम में व्यभिचारी को कड़ी सजा दी जाती है लेकिन इसके साथ-साथ पूरी पर्दा व्यवस्था रखी गई है। जहां पूरी इस्लामी शरिया लागू होगी पुरुषों और महिलाओं का मिश्रण नहीं होगा। दोनों के लिए अलग-अलग कक्षाएं होंगी, हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्थाएं होंगी । जाहिर है कि वहां भ्रष्टाचार के मामले अपने आप कम हो जाएंगे। क्योंकि इस्लामी सरकार प्रत्येक नागरिक की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए बाध्य होगी ताकि चोरी और डकैती की घटनाएं न हों और अगर कोई व्यक्ति भूख और भुखमरी के कारण चोरी करता है तो उसे चोरी की सजा नहीं दी जाएगी। यही कारण है कि सऊदी अरब और उन क्षेत्रों में जहां कभी शरिया दंड को सजा के रूप में लागू किया गया था, अपराध दर शून्य हो गई थी। इसके विपरीत जहां अपराध को रोकने के लिए माहौल बनाने के लिए कोई काम नहीं किया गया था और केवल कड़ी सजाएं निर्धारित की गई थीं वहां पर अपराध पर काबू नहीं पाया जा सका वहां पर अपराधियों की संख्या बढ़ती ही चली गई। उदाहरण के तौर पर हमारा प्यारा देश भी उसी में शामिल है।

(Udaipur Kiran) / एम ओवैस

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