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लोकसभा चुनाव : हुगली लोकसभा सीट पर दो सितारों के बीच जंग

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कोलकाता, 20 मार्च (Udaipur Kiran) । लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद सियासी दंगल शुरू हो चुका है। पश्चिम बंगाल में लड़ाई दिलचस्प है क्योंकि विपक्षी दलों के इंडी गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद ममता बनर्जी ने सभी 42 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिया है। इनमें से हुगली लोकसभा सीट बेहद खास है। इस बार यहां दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। इस सीट पर अभिनेत्री से नेता बनी दो महिला उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है, जिसमें से एक मौजूदा सांसद हैं और एक दशक से राजनीति में सक्रिय हैं तो दूसरी अनुभवहीन।

किस पार्टी से कौन है उम्मीदवार

भाजपा ने हुगली से मौजूदा सांसद लॉकेट चटर्जी को फिर से उम्मीदवार बनाया है, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने अभिनेत्री से नेता बनी और लोकप्रिय रियलिटी शो ”दीदी नंबर 1” की एंकर रचना बनर्जी को मैदान में उतारा है।

दूसरी ओर, मैदान में माकपा की युवा राज्य समिति के सदस्य और ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता मोनोदीप घोष भी हैं, जो रचना बनर्जी की तरह चुनावी राजनीति में पहली बार आए हैं। अपने चालीसवें वर्ष के मध्य में घोष दो सेलिब्रिटी प्रतिस्पर्धियों के खिलाफ लड़ाई में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

प्रचार अभियान शुरू होने से पहले, चटर्जी और बनर्जी दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि चुनावी लड़ाई उनके संबंधों को कभी खराब नहीं करेगी। दोनों फिल्मों में साथ अभिनय भी कर चुकी हैं।

क्या है भौगोलिक और औद्योगिक स्थिति

हुगली जिला पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के नजदीक स्थित है। इसका नाम हुगली नदी के नाम पर रखा गया है। जिले का मुख्यालय हुगली-चिनसुराह (चुंचुरा) में है। इसके चार उपविभाग हैं- चिनसुराह सदर, श्रीरामपुर, चंदननगर और आरामबाग।

हुगली शहर उपनिवेशीकरण से पहले भारत में व्यापार के लिए एक प्रमुख नदी बंदरगाह था। भुरशुट के बंगाली साम्राज्य के हिस्से के रूप में जिले में हजारों साल की समृद्ध विरासत अभी भी मौजूद है। 2011 की जनगणना के अनुसार हुगली जिले की जनसंख्या 55 लाख 19 हजार 145 है। यह राज्य में मुख्य रूप से जूट खेती, जूट उद्योग और जूट व्यापार केंद्र है।

क्या है राजनीतिक इतिहास

1952 में जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी तब भी यहां से कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं जीता था। 1952 में एचएमएस के एनसी चटर्जी जीते थे। उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार को हराया था। 1957 और 1962 में सीपीआई के प्रोवत कार जीते थे। 1967 में सीट पर माकपा ने कब्जा कर लिया और माकपा के बीके मोदक सांसद चुने गए थे। 1977 में भी माकपा के बीके मोदक दोबारा सांसद चुने गए थे।

1980 में माकपा के रूपचंद पाल विजयी हुए। 1984 के चुनाव में कांग्रेस की इंदुमती भट्टाचार्य यहां से चुनाव जीती थीं। इसके बाद माकपा ने फिर वापसी की और 1989 में रूपचंद पाल सांसद चुने गए। 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 तक माकपा के उम्मीदवार के तौर रूपचंद पाल यहां से सांसद चुने जाते रहे। 2009 में ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार डॉ. रत्ना डे ने छह बार से सांसद रहे माकपा नेता को हरा दिया था।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मारी बाजी

2019 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर पासा पलटा और भाजपा के टिकट पर लॉकेट चटर्जी छह लाख 71 हजार 448 वोटों से जीतीं। तृणमूल कांग्रेस की डॉ. रत्ना डे को पांच लाख 98 हजार 086 वोट मिले।सीपीआई (एम) के प्रदीप साहा को महज एक लाख 21 हजार 588 वोटों से संतोष करना पड़ा था।

(Udaipur Kiran) /ओम प्रकाश

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