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आपराधिक मामलों के लम्बित होने से जमानत देने से नहीं किया जा सकता इंकार : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट

-झांसी के याची को हत्या के प्रयास सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं में दर्ज प्राथमिकी पर रिहा करने का आदेश

प्रयागराज, 29 अप्रैल (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी के खिलाफ पहले से कई अन्य मामले लम्बित हैं तो इस आधार पर नए मामलों में जमानत देने से इंकार नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐश मोहम्मद और शिवराज सिंह उर्फ लल्ला बाबू के मामले में दिए गए आदेश का हवाला दिया। इसके साथ ही याची की जमानत मंजूर करते हुए उसे रिहा करने का आदेश पारित किया।

यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार पचौरी ने आजमगढ़ के शैलेष कुमार यादव की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है। याची के खिलाफ हत्या के प्रयास सहित आईपीसी की दो अन्य धाराओं में आजमगढ़ के देवगांव थाने में प्राथमिकी दर्ज है। याची अधिवक्ता ने कहा कि वह याची निर्दोष है और उसे गलत इरादे से मौजूदा मामले में झूठा फंसाया गया है। याची का नाम प्राथमिकी में नहीं है। पुलिस ने मुखबिर से सूचना मिलने के आधार पर याची को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। उसके पास से कोई आपत्तिजनक वस्तु बरामद नहीं हुई है और इकबालिया बयान के आधार पर मामले में फंसाया गया है।

सरकारी अधिवक्ता ने इसका विरोध किया और कहा कि यदि आवेदक को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वह फिर से इसी तरह की गतिविधियों में शामिल हो जाएगा और जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करेगा। उसके खिलाफ पहले से ही कई अपराधिक मामले दर्ज हैं।

इस पर कोर्ट ने कहा कि पूर्व में लम्बित अपराधों के आधार पर याची को जमानत पर रिहा न करने का आधार नहीं बनता है। लिहाजा, उसे निजी मुचलके और दो प्रतिभूतियों पर रिहा किया जाए।

(Udaipur Kiran) /आर.एन/राजेश

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