Uttar Pradesh

बांदा: चार दशक पहले लोकसभा चुनाव में निर्दलीय पड़े थे भाजपा पर भारी

बांदा लोक सभा चुनाव

बांदा, 01 अप्रैल (Udaipur Kiran) । भारतीय जनता पार्टी इस समय विश्व की नंबर वन पार्टी बनी हुई है। केंद्र सहित देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकार है। लेकिन एक जमाना वह भी था जब भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई और 1984 में लोकसभा का चुनाव लड़ी। उस चुनाव में बांदा चित्रकूट संसदीय सीट पर भाजपा प्रत्याशी पांचवें पायदान पर थे, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार भाजपा से अधित मत पाये थे। पिछले चार दशक के बाद भाजपा इस समय शीर्ष स्थान पर है। जो उस जमाने में पहले स्थान पर थे, अब वह खिसक कर तीसरे-चौथे नंबर के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

बांदा चित्रकूट संसदीय सीट पर 1984 में भारतीय जनता पार्टी समेत 14 उम्मीदवार चुनाव मैदान में ताल ठोंक रहे थे। 1984 में ही इंदिरा गांधी की हत्या हो जाने से कांग्रेस की लहर चल रही थी। चुनाव में जब नतीजा आया तो इस सीट से प्रत्याशी रहे कांग्रेस के भीष्म देव दुबे चुनाव जीतने में सफल रहे। जबकि भाजपा का प्रदर्शन सबसे खराब रहा।

भाजपा उम्मीदवार अंबिका प्रसाद पांडे को सिर्फ 28,797 मत मिले थे और वह पांचवें स्थान पर पहुंच गए थे। भाजपा ने 1977 में जनता पार्टी से चुनाव लड़कर रिकार्ड मतों से जीत हासिल करने वाले अंबिका प्रसाद पांडे को प्रत्याशी बनाया था। लेकिन कांग्रेस की लहर के कारण अंबिका प्रसाद पांडे कोई खास चमत्कार नहीं कर सके। उन्हें जनता ने पूरी तरह नकार दिया था। जबकि उनसे आगे निर्दलीय उम्मीदवार श्यामा चरण ने 49,249 और देव कुमार ने 42 हजार 583 मत हासिल किए थे।

चार दशक में भाजपा का ग्राफ बढ़ता चला गया। 90 के दशक में भाजपा के प्रकाश नारायण त्रिपाठी और रमेश चंद्र द्विवेदी सांसद बने। इसके बाद राम सजीवन कम्युनिस्ट और बसपा के टिकट पर सांसद बनते रहे। सपा प्रत्याशी को भी मौका मिला। इधर 2014 में फिर भाजपा ने जीत दर्ज की 2019 में मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी को जीत मिली। 1984 में कांग्रेस प्रत्याशी को जीत हुई थी। भाजपा और सपा बसपा के उदय होने से कांग्रेस को पिछले चार दशक से जीत नसीब नहीं हुई। 2014 से 2019 तक कांग्रेस की हालत वही हो गई जो 1984 में भाजपा की थी। वर्तमान में कांग्रेस प्रत्याशी चौथे पांचवें नंबर पर रहता है।

चुनाव विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सुधीर निगम बताते हैं कि आजादी के बाद हुए अधिकांश चुनाव में मतदाता पार्टी से अधिक प्रत्याशियों के व्यक्तित्व पर मतदान करते थे। उम्मीदवार की साफ सुथरी छवि पर प्रभावित होकर मतदाता वोट डालते थे। उस समय प्रत्याशी भी दल से ज्यादा खुद के काम पर भरोसा करते थे, इसलिए हमेशा छवि वाले प्रत्याशी की जीत होती थी, लेकिन अब जमाना बदल गया है अब राजनीतिक दल भी जाति के आधार पर टिकट वितरण करते हैं। जिस प्रत्याशी के जाति के मतदाता ज्यादा होते हैं। वही प्रत्याशी चुनाव में जीत सुनिश्चित करता है पहले तो निर्दलीय भी चुनाव जीत जाते थे।

(Udaipur Kiran) /अनिल/राजेश

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