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नर्क से मुक्ति दिलाता है 21वां रोजा, रमजान का आख़िरी अशरा शुरू: सैयद हसन

सैयद हसन
सैयद हसन

भागलपुर, 01 अप्रैल (Udaipur Kiran) । पाक-ए-रमजान माह के इक्कीसवें दिन सोमवार को पूरी दुनिया के साथ भागलपुर वासियों ने भी इक्कीसवां रोजा रख सेहरी सुबह 04 बजकर 26 मिनट पर खाकर आरंभ किया। तत्पश्चात पूरे दिन ऊपर वाले की इबादत करते हुए शाम 06.08 बजे इफ्तारी कर रात को तराबीह की नमाज पढ़ी और अपने मुल्क भारत के साथ राज्य और समाज में अमन-चैन व भाईचारगी के साथ खुशहाली की दुआ मांगी। इसी के साथ सोमवार को माहे रमजान का चौथा और आखिरी अशरा शुरू हो गया। उक्त आशय की जानकारी खानकाह-ए-पीर शाह दमड़िया के सज्जादानशीं सैयद शाह फकरे आलम हसन ने दी।

उन्होंने बताया कि अपने मुल्क भारत में इस बार मुबारक माह रमजान की शुरुआत 11 मार्च से हुई थी। इसके बाद रोजेदार 12 मार्च से रोजा लगातार रखते आ रहे हैं। सोमवार को रोजेदारों ने इक्कीसवें रोजे को संपन्न किया। सैयद शाह हसन ने कहा कि इक्कीसवें रोजे से तीसवें रोजे तक के दस दिन/दस रातें रमजान माह का आख़िरी अशरा दोजख से आजादी का है।

उन्होंने बताया कि 21वां रोजा शेर-ए-खुदा हजरत अली की शहादत की याद दिलाता है। इनमें कुछ न कुछ तारीखी वाक्यात हुए हैं, जिसमें 21 वां रोजा भी शामिल है। इसे हजरत अली की शहादत के रूप में जाना जाता है। चूंकि आख़िरी अशरे में ही लैलतुल क़द्र/शबे-क़द्र (वह सम्माननीय रात की विशिष्ट रात्रि) जिसमें अल्लाह यानी ईश्वर का स्मरण तमाम रात जागकर किया जाता है तथा जिस रात की बहुत अज्र यानी पुण्य की रात माना जाता है। क्योंकि शबे-कद्र से ही ईश्वरीय ग्रंथ और ईश्वरीय वाणी यानी पवित्र कुरआन का नुजूल या अवतरण शुरू हुआ था) आती है, इसलिए इसे दोजख से निजात का अशरा भी कहा जाता है। शरई तरीके से रखा गया ”रोजा” दोजख से निजात दिलाता है।

सैयद शाह हसन ने कहा कि कुरआने-पाक के सातवें पारे की सूरह उनाम की चौंसठवीं आयत में पैग़म्बरे-इस्लाम हजरत मोहम्मद को इरशाद (आदेश) फरमाया- ”आप कह दीजिए कि अल्लाह ही तुमको उनसे निजात देता है।” यहाँ यह जानना जरूरी होगा कि ”आप” से मुराद हजरत मोहम्मद से है और ”तुमको” से यानी दीगर लोगों से है। मतलब यह हुआ कि लोगों को अल्लाह ही हर रंजो-गम और दोजख़ (नर्क) से निजात (मुक्ति) देता है। सवाल यह उठता है कि अल्लाह (ईश्वर) तक पहुंचने और निजात (मुक्ति) को पाने का रास्ता और तरीका क्या है? इसका जवाब है कि सब्र (संयम) और सदाकत (सच्चाई) के साथ रखा गया रोजा ही अल्लाह तक पहुंचने और दोजख से निजात पाने का रास्ता और तरीका है।

उन्होंने कहा कि अब सवाल यह उठता है कि अल्लाह तक पहुंचने और निजात को पाने का रास्ता और तरीका क्या है? तो इसका जवाब यह है कि सब्र और सदाकत के साथ रखा गया रोजा ही अल्लाह तक पहुंचने और दोजख से निजात पाने का सुगम रास्ता और तरीका है।

(Udaipur Kiran) /बिजय

/चंदा

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