Delhi

महिलाओं के सपनों को उड़ान की जरुरत, न कि बेड़ियों की : डॉ. बीरबल झा

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर डॉ. बीरबल झा और अन्य

नई दिल्ली, 08 मार्च (Udaipur Kiran) । डॉ. बीरबल झा ने शनिवार को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर समाज में महिलाओं की अहम भूमिका, शिक्षा एवं भाषा कौशल के जरिए लैंगिक समानता की अनिवार्यता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि महिला दिवस केवल उत्सव का अवसर नहीं बल्कि लैंगिक समानता के प्रति संकल्पबद्ध होने का दिन है। झा ने कहा कि महिलाएं समाज की रीढ़ हैं, उनका सशक्तिकरण ही किसी राष्ट्र की वास्तविक प्रगति को दर्शाता है।

डॉ. बीरबल झा ने नई दिल्‍ली के लक्ष्‍मीनगर स्थित अंग्रेजी संचार कौशल में अग्रणी संस्थान ब्रिटिश लिंग्वा में शिक्षा और भाषा के माध्यम से महिला सशक्तिकरण: सामाजिक न्याय की ओर एक कदम विषय पर एक विशेष संगोष्ठी को संबोधित करते हुए यह बात कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. झा ने कहा कि महिला केवल परिवार की धुरी ही नहीं बल्कि संपूर्ण समाज की निर्माता होती है। यदि हम महिलाओं को सशक्त करते हैं, तो हम पूरे विश्व को सशक्त कर रहे होते हैं।

शिक्षा महिला सशक्तिकरण की कुंजी

डॉ. बीरबल झा ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए महिला सशक्तिकरण के लिए शिक्षा को सबसे प्रभावी साधन बताया। डॉ. झा ने कहा, एक शिक्षित लड़की न केवल स्वयं को, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी सशक्त बनाती है। जब आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं, तो आप पूरे समाज को शिक्षित करते हैं। जब आप एक महिला को सशक्त करते हैं, तो आप संपूर्ण सभ्यता को मजबूत करते हैं।उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने, उनकी आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाने और सामाजिक बाधाओं को तोड़ने का सबसे प्रभावी माध्यम है।

महिलाओं के योगदान को मिले बराबरी का दर्जा

डॉ. बीरबल झा ने अपने संबोधन में कहा कि इतिहास गवाह है कि महिलाओं ने सभ्यता, अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी, वे आज भी भेदभाव और असमानता का सामना कर रही हैं। उन्‍होंने कहा, महिला सशक्तिकरण कोई विशेषाधिकार नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति इस बात से आंकी जाती है कि वहां महिलाओं को कितनी गरिमा और समान अवसर मिलते हैं। जो समाज अपनी महिलाओं को सम्मान और समान अवसर देता है, वही वास्तव में समृद्ध होता है।

रूढ़ियों को तोड़ने की जरूरत

डॉ. बीरबल झा ने कहा कि सदियों से सामाजिक मान्यताओं ने महिलाओं की आकांक्षाओं को सीमित कर दिया है, लेकिन जब भी उन्हें अवसर मिले हैं, उन्होंने हर क्षेत्र में सफलता हासिल की है—चाहे वह राजनीति हो, व्यवसाय, विज्ञान या कला। उन्होंने कहा, महिलाओं के सपनों को रूढ़ियों में नहीं बांधना चाहिए। उन्हें बेड़ियों की नहीं, बल्कि उड़ान की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं की प्रगति में बाधा डालने वाली समस्याओं जैसे कार्यस्थल पर भेदभाव, वेतन असमानता और नेतृत्व के अवसरों की कमी को दूर करना बेहद जरूरी है। महिलाएं किसी सीमा में बंधने के लिए नहीं, बल्कि दुनिया को रोशन करने के लिए बनी हैं।

महिलाओं के सम्मान के बिना अधूरी प्रगति

डॉ. बीरबल झा ने कहा कि किसी भी समाज की असली पहचान इस बात से होती है कि वहां महिलाओं को कितना सम्मान और समानता मिलती है। जो समाज अपनी महिलाओं का सम्मान नहीं करता, वह कभी भी वास्तविक प्रगति नहीं कर सकता। महिलाओं को गरिमा के साथ जीने का अधिकार मिलना चाहिए और उनकी आवाज़ हर स्तर पर सुनी जानी चाहिए। डॉ. झा ने आगे कहा, महिला सशक्तिकरण केवल सरकार या संगठनों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। जब तक महिलाएं सुरक्षित, सम्मानित और समान अधिकारों से युक्त नहीं होंगी, तब तक समाज का संतुलित विकास संभव नहीं होगा।

शिक्षा और भाषा से खुले नए अवसरों के द्वार

इस संगोष्ठी ने यह स्पष्ट किया कि शिक्षा और भाषाई दक्षता महिलाओं को न केवल आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि उन्हें समाज में समान अवसर प्राप्त करने में भी सक्षम बनाती है। डॉ. झा ने इस अवसर पर बल देते हुए कहा कि वह महिलाओं को शिक्षा और भाषा कौशल के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि वे समाज के हर क्षेत्र में बराबरी से भागीदारी निभा सकें। यह संगोष्ठी महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुई, जहां शिक्षा और भाषा को सामाजिक न्याय का महत्वपूर्ण उपकरण बताया गया।

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(Udaipur Kiran) / प्रजेश शंकर

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