राष्ट्रीय बीज सम्मेलन में दूसरे दिन महिला सशक्तीकरण, बीज प्रणाली और टिकाऊ कृषि नवाचार पर मंथन
वाराणसी,29 नवम्बर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश की कृषि उत्पादन आयुक्त, मोनिका एस. गर्ग ने शुक्रवार को कहा कि भारत में महिलाएं कृषि श्रमशक्ति का लगभग 33 से 50 फीसदी हिस्सा हैं, फिर भी उनके काम को अक्सर मान्यता नहीं मिलती। उन्होंने महिलाओं को भूमि, वित्त, प्रौद्योगिकी और नीति-निर्माण के मंचों तक समान पहुंच देने की आवश्यकता पर बल दिया। कृषि उत्पादन आयुक्त 13वें राष्ट्रीय बीज सम्मेलन (एनएससी) के दूसरे दिन “बीजों के संरक्षक: बीज प्रणाली में महिलाएं, युवा और छोटे किसान” विषयक चर्चा सत्र को सम्बोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका के बाद भी महिलाओं की अनदेखी हो रही है। उन्होंने कहा कि कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है, जो 50 फीसद से अधिक श्रमशक्ति को रोजगार देती है। इस क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका अमूल्य है। वे न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं, बल्कि भारत के सतत विकास की नींव भी रखती हैं। हालांकि, संसाधनों की सीमित पहुंच और निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी कम है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के असमान प्रभावों का भी उल्लेख किया, जो ग्रामीण महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। उन्होंने बताया कि सूखा और अनियमित बारिश जैसी समस्याएं इन महिलाओं के जीवन को और कठिन बनाती हैं। कृषि में महिलाओं की भूमिका की सराहना कर गर्ग ने कहा कि महिलाएं पारंपरिक ज्ञान को सहेजने के साथ-साथ प्रौद्योगिकी का उपयोग कर उत्पादकता बढ़ा रही हैं। मोबाइल टेक्नोलॉजी, डिजिटल प्लेटफॉर्म और वास्तविक समय में मौसम की जानकारी का उपयोग फसल उत्पादन और बाजार तक पहुंच में सुधार के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा, महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूह और सूक्ष्म वित्त पहलें ग्रामीण महिलाओं को कृषि में निवेश और आर्थिक स्वतंत्रता के अवसर प्रदान कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हमें महिलाओं को केवल कृषि में भागीदार के रूप में नहीं, बल्कि समान भागीदार के रूप में देखना चाहिए। नीतियों को महिलाओं के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर बनाया जाना चाहिए, जिससे उन्हें संसाधनों, शिक्षा और नेतृत्व के समान अवसर मिलें। सम्मेलन में अन्य वक्ताओं ने महिला सशक्तीकरण, बीज प्रणाली और टिकाऊ कृषि नवाचार के बारे में बताया। कृषि में महिलाओं की परिवर्तनकारी भूमिका, बीज प्रणाली में नवीन दृष्टिकोण और वैश्विक कृषि चुनौतियों से निपटने के लिए स्थिरता की आवश्यकता पर भी चर्चा हुई।
वहीं, मक्का की उत्पादकता बढ़ाने पर एक अन्य सत्र ने टिकाऊ कृषि तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया। इन सत्रों के साथ-साथ कई पक्ष कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। इनमें ग्लोबल साउथ के लिए संसाधन-कुशल खेती, खाद्य सुरक्षा में मिलेट्स का महत्व, सीधी बुवाई के जरिए चावल उत्पादन की दक्षता बढ़ाने की संभावना, और देशी फसलों व बीजों के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाने जैसे विषय शामिल थे।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी