
जयपुर, 16 मई (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रमुख चिकित्सा सचिव, स्वास्थ्य निदेशक, प्रमुख वित्त सचिव और प्रमुख कार्मिक सचिव से पूछा है कि समान कार्य और पद होने के बावजूद दंत चिकित्सकों का परिवीक्षा काल मेडिकल ऑफिसर के मुकाबले दो साल का क्यों रखा गया है। अदालत ने इन अधिकारियों से यह भी बताने को कहा है कि दंत चिकित्सकों को परिवीक्षा काल में मेडिकल ऑफिसर के समान भत्ते का भुगतान क्यों नहीं किया जा रहा है। सीजे एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस मुकेश राजपुरोहित की खंडपीठ ने यह आदेश डॉ प्रियंका सैनी व अन्य की ओर से दायर याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए।
याचिका में अधिवक्ता निखिल सैनी ने अदालत को बताया कि दंत चिकित्सक और मेडिकल ऑफिसर का एक समान पे-ग्रेड होता है। वहीं इन दोनों श्रेणियों के चिकित्सकों का नियोक्ता और सेवा शर्ते भी एक समान ही होती है। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने 3 दिसंबर, 2012 को नोटिफिकेशन जारी कर राजस्थान मेडिकल एवं स्वास्थ्य सेवा नियम, 1963 के नियम 28 में संशोधित कर मेडिकल ऑफिसर का परिवीक्षा काल दो साल के बजाए एक साल कर दिया। इसके पीछे राज्य सरकार का तर्क था कि मेडिकल ऑफिसर अपने एमबीबीएस कोर्स के दौरान ही एक साल की इंटर्नशिप कर लेते हैं। इस नोटिफिकेशन को चुनौती देते हुए कहा गया कि मेडिकल ऑफिसर और दंत चिकित्सकों की सभी सेवा शर्ते आदि समान हैं और दंत चिकित्सक भी अपनी पढ़ाई के बाद एक साल का इंटर्नशिप करते हैं। इसके बावजूद दोनों के बीच परिवीक्षा काल को लेकर भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसके अलावा जब दंत चिकित्सक भी मेडिकल ऑफिसर के समान कार्य कर रहे हैं तो फिर उन्हें भी परिवीक्षा काल में मेडिकल ऑफिसर के समान भत्ता दिया जाना चाहिए। जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है।
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(Udaipur Kiran)
