
कोलकाता, 14 अप्रैल (Udaipur Kiran) । स्कूलों में नौकरी के बदले रिश्वत के बड़े घोटाले की जांच कर रही सीबीआई अब यह पता लगाने में जुटी है कि आखिर 2016 की लिखित परीक्षा में इस्तेमाल हुई ओएमआर शीट की स्कैन या ‘मिरर इमेज’ क्यों नहीं बचाई गई। जबकि पश्चिम बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन (डब्ल्यूबीएसएससी) के पास यह सुविधा मौजूद थी।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 2016 की नियुक्ति प्रक्रिया को पूरी तरह रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को भी सही ठहराया, जिसमें कहा गया था कि यह तय कर पाना असंभव है कि किस उम्मीदवार ने घूस देकर नौकरी पाई और कौन ईमानदारी से पास हुआ, इसलिए पूरी पैनल को ही खारिज करना पड़ेगा।
जांच में सामने आया है कि उस वक्त की परीक्षा में इस्तेमाल हुई ओएमआर शीट को बिना स्कैन कॉपी संभाले ही नष्ट कर दिया गया। अब सवाल यह उठ रहा है कि जब डब्ल्यूबीएसएससी के पास खुद की तकनीकी क्षमता मौजूद थी—जिससे बड़ी संख्या में ओएमआर शीट को स्कैन कर रखा जा सकता था—तो फिर इस काम को गाजियाबाद की एक निजी एजेंसी को क्यों सौंपा गया ?
सूत्रों का कहना है कि सीबीआई अब उस शख्स की पहचान में लगी है, जिसके निर्देश पर डब्ल्यूबीएसएससी ने यह पूरा काम बाहर की एजेंसी को दिया और आयोग की अपनी व्यवस्था का उपयोग नहीं किया।
यह मामला दो स्तर की गंभीर लापरवाही दिखाता है। पहली गड़बड़ी ये थी कि आयोग ने 2016 की ओएमआर शीट की सॉफ्ट कॉपी एक साल बाद ही नष्ट कर दी, जबकि उससे पहले आयोग की नीति थी कि तीन साल तक डेटा को सुरक्षित रखा जाए।
सीबीआई ने कोर्ट को बताया है कि यह नियम जानबूझकर बदला गया और इसके पीछे मंशा सबूत मिटाने की थी। मार्च में सीबीआई ने कोलकाता की एक विशेष अदालत में यह भी बताया कि ये आदेश तत्कालीन शिक्षा मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी के निर्देश पर दिए गए थे।
अब जांच एजेंसी इस बात की तह तक जाने की कोशिश कर रही है कि क्यों और किसके इशारे पर नियम बदले गए और खुद की तकनीक को नजरअंदाज कर बाहरी एजेंसी को शामिल किया गया।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
