जम्मू,, 9 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का जिस प्रकार का प्रदर्षन रहा है निष्चित रूप से इस पर कांग्रेस को मंथन करने की जरूरत है क्योंकि कांग्रेस की हार के एक नहीं कई फैक्टर है जिसमें सबसे बड़ा फैक्टर कांग्रेसी नेता मीडिया से दूर रहे और खुद भी जनता तक पहुंच नहीं बना पाये। अगर कहीं पहुंचे भी तो जनता के मन में वो खुद के लिए वो पुराना विष्वास नहीं जगा पाये क्योंकि करीब दस साल बाद जम्मू कष्मीर में विधानसभा चुनाव हुए और इस दौरान कांग्रेस के नेताओं व जनता के बीच दूरी इतनी बढ़ गई थी कांग्रेस के नेता उसे भर नहीं पाये। जबकि एक फैक्टर तो प्रत्याषियों को चयन भी रहा। जो षायद कहीं न कहीं आलाकमान सही प्रकार से नहीं कर पाई जबकि कांग्रेस को सबसे अधिक नुक्सान नेकां के साथ गठबंधन करने के लिए जम्मू खित्ते से उठाना पड़ा। क्योंकि जिस प्रकार कष्मीर खित्ते में एक तरफा भाजपा के खिलाफ नेकां की लहर चली तो वहीं दूसरी तरफ जम्मू खित्ते में एक तरफा नेकां के खिलाफ लोगों ने भाजपा को वोट दे दिया। यानि न कष्मीरियों ने भाजपा को पसंद किया और न जम्मू ने कष्मीरी लीडरषिप के साथ जाने वाले नेताओं को ही पसंद किया। कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा दिक्कत तो इस बात की है कि इनके दिग्गज नेताओं का राजनीतिक भविश्य भी अब हार के बाद दांव पर लग गया है। क्योंकि कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रमण भल्ला को तो इस हार के साथ चौथी हार का सामना करना पड़ा। जबकि पूर्व सांसद चौधरी लाल सिंह तीसरी बार हारे है तो पूर्व डिप्टी सीएम तारा चंद को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही अगर कांग्रेस के अन्य नेताओं की बात करें तो डा मनोहर लाल षर्मा कांग्रेस की टिकट पर दो बार हारे है। वहीं, मूला राम भी दूसरी बार हारे। ऐसे में इन नेताओं का राजनीतिक भविश्य आगे क्या होगा। क्या पार्टी इन्हें फिर से चुनाव लड़ने का मौका देगी या फिर इन्हें अब संगठन में जिम्मेदारी निभाने की भूमिका दी जाएगी। यह सवाल अभी भविश्य की गोद में है। लेकिन कांग्रेस जिस प्रकार से जम्मू खित्ते से गायब हुई उसे इस पर विचार जरूर करना चाहिए क्योंकि जम्मू खित्ते कांग्रेस का सफाया होना निष्चित रूप में नेताओं की लापरवाही का ही परिणाम है और जिनके कंधों पर कांग्रेस के प्रत्याषियों को जिताने की जिम्मेदारी थी उन्हें भी इमानदारी से अपनी जिम्मेदारी में हुई कोताही को स्वीकार करते हुए आगे की रणनीति बनाने पर विचार करना चाहिए। क्योंकि कांग्रेस और भाजपा जम्मू खित्ते की आवाज है तो नेकां व पीडीपी कष्मीर खित्ते की आवाज है। ऐसे में एक आवाज का खामोष होना दूसरे को मनमानी करने का मौके देने के सामान होगा। इसलिए मंथन जरूरी है।
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(Udaipur Kiran) / अश्वनी गुप्ता