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हम शक्तिशाली बनें, पर प्रवृत्ति वही बनी रहे : सुनील आंबेकर

जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर श्रीअवधेशानन्द गिरि जी एवं सुनील आंबेकर

हिन्दुत्व में जो तत्व है वो एकत्व है, वहीं हिन्दुतत्व है : सुनील आंबेकर

महाकुम्भ नगर, 25 जनवरी (Udaipur Kiran) । हमें अपने देश को कम समझने की जरूरत नहीं है। भारत अपने गौरवशाली इतिहास की ओर लौट रहा है। जहां वो समृद्ध देश बनने की राह पर है। राजनीतिक दृष्टि से पूरी दुनिया में बहुत सारे देशों ने इस तरह की मान्यता दी है। आर्थिक दृष्टि से आने वाले समय में एक बार फिर सुजलाम-सुफलाम की स्थिति में पहुंचने वाले हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर शनिवार को ‘सनातन संस्कृति में समाहित समष्टि कल्याण के सूत्र’ विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी में अपने विचार रखे रहे थे। संगोष्ठी का आयोजन जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर श्रीअवधेशानन्द गिरि जी महाराज के निर्देशन में प्रभु प्रेमी संघ शिविर द्वारा किया गया।

सुनील आंबेकर ने कहा, आज हमारे सामने नयी तकनीक और विषय वस्तु हैं। उस पर विचार करने की जरूरत है। हम शक्तिशाली राष्ट्र बनें पर हमारी सद्प्रवृत्ति बनी रहे। हमें आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ सांस्कृतिक यात्रा को भी मजबूत करना है। इसी को आगे बढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिये सन्तों का मार्गदर्शन इस दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहाकि, सन्तों का आशीर्वाद भाग्य का विषय रहता है। मनुष्य जीवन में सब कुछ कर सकता है, पुरुषार्थ कर सकता है, परमार्थ कर सकता है, परन्तु सद्बुद्धि और विवेक के लिये सन्तों का आशीर्वाद हमेशा आवश्यक होता है। सन्त हमारे समाज में हमेशा आदरणीय रहे हें। हमारी भारतीय संस्कृति, हमारी सनातन संस्कृति के बारे में बात करते हैं, तो ये हमारे सन्तों की बड़ी परम्परा है। सन्तों के हजारों वर्षों के त्याग के कारण ही हमारी संस्कृति अक्षुण्ण है। सन्तों ने उसे बचाकर रखा है। किसी भी कठिन से कठिन परिस्थिति में उसका क्षरण नहीं होने दिया। सन्तों के भिन्न-भिन्न मत और सम्प्रदाय हैं लेकिन आप देखेंगे कि वो किसी का विरोध नहीं करते। वो समाज को जोड़ने वाले हैं। ये कैसे एकतत्व है, हमारा इसका क्या परस्पर सम्बन्ध है।

सुनील आंबेकर ने कहा कि, हमारा देश समर्थ था, समृद्ध था, हमारे देश का जो चरित्र था वो सद्भाव का था। हम दुनिया में बहुत से देश देख सकते हैं कि वो दुनिया के किसी कोने में गये तो उनके मन में ऐसा भाव होता है कि उन्हें वहां जाकर माफी मांगनी पड़ती है। 500 से 1000 वर्ष का इतिहास देखें तो जिन देशों का समय ठीक चल रहा था, उन्होंने तब दुनिया के साथ जिस तरह का व्यवहार किया। किसी ने दुनिया को गुलाम बनाया, किसी ने दुनिया को आर्थिक दृष्टि से लूटा, किसी ने दुनिया के राष्ट्रों को पराजित करके वहां पर अपना शासन जमाया। किसी ने धर्म, परम्परा और पद्धतियों को नष्ट करने का प्रयास किया। कभी जबरदस्ती तो कभी लालच देकर। उन्होंने इतने अत्याचार किये हैं कि आज जब वो किसी देश में जाते हैं अपने पूर्वजों के कृत्यों के लिये माफी मांगते हैं। हजारों वर्षों के इतिहास में भारत ने विश्व के किसी भी मत, सम्प्रदाय, संस्कृति और राष्ट्र के साथ ऐसा कोई काम नहीं किया। जिसके लिये किसी देश जाकर भारत के किसी व्यक्ति या राष्ट्र प्रमुख को यह कहना पड़े कि, भाई गलती हुई है, माफ कर दो। यह जो बात है पावन प्रतीत होती है। यह हमारी सनातन संस्कृति का ही प्रभाव है। जिसका पालन पीढ़ी दर पीढ़ी किया गया है।

उन्होंने कहाकि, वर्तमान में भी हम देखते हैं कि दुनिया में प्रतिस्पर्धा चल रही है। कोरोना काल में हमने देखा पूरी दुनिया की प्रवृत्ति कैसी थी। हमने यह भी देखा कि कोराना काल में भारत की प्रवृत्ति कैसी थी। हमारे पास जितनी कोरोना की वैक्सीन थी, उसमें से हमने जिसको जितनी जरूरत थी, उतनी दी भी। किसी ने उसका विरोध नहीं किया। भारत का मन और भारत सरकार का मन एक ही जैसा है। आज के समय में भी इस आचरण और प्रवृत्ति के बनाये रखें। उन्होंने आगे कहाकि, हमारे यहां ज्ञान तब पैदा हुआ जब समृद्ध थे, सशक्त थे। ये ज्ञान अभाव में पैदा नहीं हुआ। योग भी उसी ज्ञान का परिणाम है। जिसे आज दुनिया के विकसित से विकसित देश अपना रहे हैं।

सुनील आंबेकर ने कहा, हिन्दुत्व क्या है। हिन्दुत्व में जो तत्व है वो एकत्व है, वहीं हिन्दुतत्व है। ये अनुभूति बहुत जरूरी है। अनुभूति के साथ दृष्टि बदल जाती है। समृद्धि के एकत्व का सूत्र अहम है।

उन्होंने आगे कहाकि, पर्यावरण की चिंता आज जो पूरी दुनिया में दिखाई दे रही है। ये चिन्ता ऐसे ही पैदा नहीं हुई है। पिछले 40-50 वर्षों में देशों ने पर्यावरण के साथ अत्याचार किया। अब मानव को कष्ट पहुंचा है तो पर्यावरण के लेकर चिंता प्रगट की जा रही है। असल में मनुष्य की भलाई के लिए समाधान ढूंढे जाएंगे तो भला नहीं होगा। बाजार मांग से चलता है। हमारी जीवन शैली पर्यावरण अनुकूल होगी तो अपने आप बाजार भी बदल जाएगा। तकनीक बदलेगी, साधन बदलेगा। आज देश और समाज के सामने जो प्रश्न पैदा हुए हैं उनका समाधान अपनी संस्कृति के हिसाब से ढूंढ सकते हैं।

(Udaipur Kiran) / Dr. Ashish Vashisht

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