
हल्द्वानी, 27 मार्च (Udaipur Kiran) । कोलोरेक्टल कैंसर से पीड़ित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक सुव्यवस्थित उपचार दृष्टिकोण कैसे मदद कर सकता है, इस उद्देश्य से, मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल वैशाली ने एक पेशेंट सेंट्रिक जागरूकता सत्र का आयोजन किया। इस सत्र में हल्द्वानी के 56 वर्षीय मरीज की प्रेरणादायक सफर प्रस्तुत की गई, जिन्हें कोलोरेक्टल कैंसर से सफलतापूर्वक लड़ने के बाद नया जीवन मिला।
कोलोरेक्टल कैंसर वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे आम कैंसर है और कैंसर से संबंधित मौतों का दूसरा प्रमुख कारण है। मार्च को नेशनल कोलोरेक्टल कैंसर अवेयरनेस मंथ के रूप में मनाया जाता है और इस अवसर पर जागरूकता सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र में मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, वैशाली के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी (जीआई और एचपीबी) विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉ. विवेक मंगला और अस्पताल में स्टेज 2 कोलोरेक्टल कैंसर से सफलतापूर्वक ठीक हुए कुंदन सिंह की उपस्थिति रही।
मामले के बारे में बात करते हुए, मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, वैशाली के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी (जीआई और एचपीबी) विभाग के सीनियर डायरेक्टर डॉ. विवेक मंगला ने कहा, कुंदन सिंह शुरू में रेक्टल ब्लीडिंग की समस्या के साथ आए थे। जांच करने पर, उन्हें स्टेज 2 कोलन कैंसर और मल्टीपल पॉलीप्स की पहचान हुई। हमने उनके आंत के कैंसरग्रस्त हिस्से को हटाने के लिए एक न्यूनतम इनवेसिव लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की। बायोप्सी रिपोर्ट में यह पाया गया कि कैंसर कुछ लिम्फ नोड्स तक फैल चुका था, इसलिए शेष कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने और पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उन्हें एडजुवेंट कीमोथेरेपी दी गई।
इसके बाद, उनका इलियोस्टोमी क्लोजर किया गया, जिससे वे सामान्य रूप से मल त्याग करने में सक्षम हो गए। उनका उपचार सफल रहा और आज सिंह स्वस्थ और कैंसर-मुक्त जीवन जी रहे हैं। डॉ. मंगला ने आगे कहा, “यदि प्रारंभिक चरण में कोलोरेक्टल कैंसर का पता चल जाए, तो यह पूरी तरह से उपचार योग्य होता है। सफल उपचार के बाद भी, नियमित जांच आवश्यक है ताकि किसी भी संभावित पुनरावृत्ति या नए पॉलीप्स का समय रहते पता लगाया जा सके। हम सभी से, विशेष रूप से 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों से आग्रह करते हैं कि वे नियमित रूप से कोलोनोस्कोपी करवाएं और रेक्टल ब्लीडिंग या पाचन संबंधी समस्याओं को नजरअंदाज न करें। शीघ्र पहचान और समय पर हस्तक्षेप से कोलोरेक्टल कैंसर के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है और कई लोगों की जान बचाई जा सकती है।
(Udaipur Kiran) / अनुपम गुप्ता
