Uttar Pradesh

विजयदशमी शक्ति और शौर्य के पूजन का दिन : प्रो.बिहारी लाल शर्मा

कुलपति, प्रो. बिहारी लाल शर्मा

-पर्व अपने भीतर की बुराइयों को परास्त करने की प्रेरणा देता है

वाराणसी, 12 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । विजयदशमी का पर्व शास्त्रों में विशेष स्थान रखता है। इस दिन को भगवान श्रीराम के रावण पर विजय के रूप में मनाया जाता है, जो धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर और प्रकाश की अंधकार पर विजय का प्रतीक है। महाभारत में भी इस दिन का उल्लेख है, जब पांडवों ने अपना अज्ञातवास समाप्त कर अपने शस्त्रों को पुनः प्राप्त किया था। शास्त्रों के अनुसार, यह दिन शक्ति और शौर्य का पूजन करने का दिन है। ये उद्गार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. बिहारी लाल शर्मा के हैं।

कुलपति प्रो. शर्मा ने विजयादशमी पर्व पर शनिवार को विश्वविद्यालय परिवार के सदस्यों, छात्रों और समाज को शुभकामना दी। इस अवसर पर कुलपति ने महापर्व के शास्त्रीय पक्ष और उसके सामाजिक महत्व को भी बताया। उन्होंने कहा कि विजयदशमी, जिसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है और इसका शास्त्रीय महत्व गहराई से भारतीय धर्म और दर्शन में समाहित है। नवरात्रि के नौ दिनों के उपवास और देवी की पूजा के पश्चात्, दसवें दिन विजयदशमी पर शक्ति की आराधना का विशेष महत्व बताया गया है। यह केवल बाहरी शत्रुओं पर विजय का नहीं, बल्कि अपने आंतरिक दोषों, जैसे क्रोध, अहंकार और लोभ पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक है।

यह पर्व हमें सदैव धर्म के मार्ग पर चलने और अपने भीतर की बुराइयों को परास्त करने की प्रेरणा देता है। विजयदशमी न केवल ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि यह जीवन के शाश्वत मूल्यों की पुनः स्थापना और मानवता के कल्याण का प्रतीक है। पर्व भारतीय समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह पर्व संपूर्ण समाज को एकजुट करने, परस्पर सद्भाव बढ़ाने और नैतिक मूल्यों की पुनः स्थापना का अवसर प्रदान करता है। रामलीला का आयोजन और रावण दहन के साथ यह पर्व समाज को यह संदेश देता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, सत्य और धर्म की विजय अवश्य होती है।

विजयदशमी आज के सामाजिक संदर्भ में भी अत्यंत प्रासंगिक है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमें समाज में व्याप्त असमानताओं, हिंसा और अन्य बुराइयों का सामना एकजुट होकर करना चाहिए। जिस प्रकार श्रीराम ने रावण का संहार कर धर्म की स्थापना की, उसी प्रकार आज के समाज को भी नैतिकता, सहनशीलता और सत्य के मार्ग पर चलते हुए सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए।

(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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