
गुवाहाटी, 16 दिसंबर (Udaipur Kiran) । आज, 16 दिसंबर के मौके पर हम विजय दिवस की 53वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। यह ऐतिहासिक दिन 1971 में पाकिस्तान के कब्जे से बांग्लादेश की मुक्ति और स्वतंत्रता का प्रतीक है। यह अवसर भारतीय सशस्त्र बलों और बांग्लादेशी जनता के साहस और अदम्य इच्छाशक्ति को सलाम करता है, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया।
1971 का बांग्लादेश मुक्ति संग्राम आधुनिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने बांग्लादेश को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। यह युद्ध 16 दिसंबर, 1971 को 93,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ, जो आधुनिक युद्धों में एक अभूतपूर्व घटना है।
आज के दिन, हम उन वीर योद्धाओं के बलिदान को नमन करते हैं, जिन्होंने राष्ट्र के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। इस ऐतिहासिक विजय का जश्न मनाने के लिए भारतीय सेना और बांग्लादेशी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने भारत-बांग्लादेश सीमा पर त्रिपुरा के अखौरा में मिठाईयों का आदान-प्रदान किया। यह परंपरा दोनों देशों के बीच मित्रता और सहयोग को और सुदृढ़ करने का प्रतीक है।
गुवाहाटी स्थित सेना के पीआरओ ने बताया है कि यह विजय दिवस भारत और बांग्लादेश के अटूट रिश्तों और साझा इतिहास को नई ऊर्जा प्रदान करता है।
(Udaipur Kiran) / श्रीप्रकाश
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