Madhya Pradesh

छतरपुर: वन विभाग से पीडि़त मुन्नीबाई को मिला न्याय, अदालत ने हस्ताक्षेप न करने के दिया आदेश

छतरपुर, 19 जुलाई (Udaipur Kiran) ।प्रथम व्यवहार न्यायाधीश छतरपुर अरविन्द सिंह गुर्जर ने शुक्रवार काे एक आदेश जारी कर वन विभाग से प्रताडि़त मुन्नीबाई असाटी पत्नी दीनदयाल असाटी को न्याय देते हुये वन विभाग एवं राजस्व विभाग को आदेशित किया हैं कि वे वादग्रस्त जमीन पर कोई हस्ताक्षेप न करें, क्योंकि उक्त जमीन मुन्नीबाई असाटी के स्वत्व की जमीन है।

मिली जानकारी के अनुसार छतरपुर तहसील स्थित ग्राम मारगुवां में भूमि खसरा क्रमांक 199, 200, 201, 229/1, 229/3 कुल किता 5 रकवा क्रमांक 0.915, 0.397, 0.741, 0.913, 0.662 कुल रकवा 3.428 हेक्टेयर भूमि असाटी मोहल्ला छतरपुर निवासी मुन्नीबाई असाटी पत्नी दीनदयाल असाटी की जमीन है। यह जमीन इन्होंने झल्लू अहिरवार, लखनलाल अहिरवार व हरिया अहिरवार से 4 लाख रुपये में दिनांक 22 मई 18 को रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के जरिये खरीदी थी जिसका नामांतरण भी हो गया था। भूमि क्रय करने के बाद मुन्नीबाई असाटी द्वारा उक्त जमीन में रबी एवं खरीफ की फसल की जा रही थी लेकिन इसी वर्ष वन विभाग ने अचानक उक्त जमीन को अपनी जमीन बताते हुये मुन्नीबाई असाटी को खेती करने से मना कर दिया जिसके विरूद्ध मुन्नीबाई द्वारा न्यायालय की शरण ली गयी।

न्यायालय प्रथम व्यवहार न्यायाधीश वरिष्ठ खंड के चतुर्थ अतिरिक्त न्यायाधीश छतरपुर अरविन्द सिंह गुर्जर की अदालत में इस प्रकरण की सुनवाई हुई। दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश अरविन्द सिंह गुर्जर ने अपने फैसले में माना कि उक्त जमीन की स्वामी एवं अधिपत्यधारी मुन्नी असाटी है। अत: वन विभाग एवं राजस्व विभाग न तो स्वयं हस्ताक्षेप करे और न ही किसी अन्य से हस्ताक्षेप करावे। इतना ही नहीं न्यायालय ने इस मामले में प्रतिवादी वन विभाग एवं जिला प्रशासन को यह भी आदेश दिया है कि वे स्वयं अपना तथा वादी का वाद व्यय वहन करेंगे। इस मामले में मुन्नीबाई असाटी की ओर अधिवक्ता ओपी चतुर्वेदी ने पैरवी की थी जबकि वन विभाग एवं जिला प्रशासन की ओर से शासकीय अधिवक्ता दिनेश तिवारी ने शासन का पक्ष रखा था।

ज्ञात हो कि वन विभाग द्वारा सिर्फ मुन्नीबाई असाटी ही प्रताडि़त नहीं रही हैं बल्कि कई ऐसे किसान हैं जो वन विभाग की मनमानी कार्रवाई के शिकार हैं। इनमें अधिकांश किसान ऐसे हैं जो वर्षों से खेती कर रहे हैं तथा राजस्व रिकार्ड में उनका नाम दर्ज है लेकिन वन विभाग उनकी जमीन को वन भूमि बताकर खेती नहीं करने दे रहा है बल्कि जो भी खेती करने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। जिला न्यायालय के इस फैसले से उम्मीद की जा रही है कि अब वन विभाग अपनी मनमानी कार्यप्रणाली से बाज आयेगा और निरीह किसानों को प्रताडि़त नहीं करेगा।

(Udaipur Kiran) / सौरव भटनागर तोमर

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