Uttar Pradesh

सनातनी संस्कृति में समय मापने के लिए कई सम्वतों का उपयोग

फोटो प्रतीक

—भारतीय सम्वतों का महत्व और प्रासंगिक, सम्वत और कैलेंडर दो अलग-अलग शब्द

वाराणसी, 31 मार्च (Udaipur Kiran) । भारत में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से भारतीय नवसंवत्सर ‘सिद्धार्थ’ की शुरुआत हो गई है। भारत में समय मापने के लिए कई सम्वतों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक का अपना विशिष्ट महत्व और प्रासंगिकता है।

विक्रम सम्वत, महर्षि पराशर का पंचांग, शालिवाहन शाक और कलियुग जैसे सम्वतों का अपने-अपने संदर्भ में गहरा महत्व है। भारत एक विविध और समृद्ध संस्कृति वाला देश है, जहां विभिन्न बौद्धिक जातियों और समुदायों के लोग रहते हैं। ऐसी विविधता के बीच समय को मापने के लिए सम्वतों का उपयोग न केवल परम्परा है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में कितने सम्वत हैं और उनकी शुरुआत कैसे होती है?। शोधार्थी डॉ श्वेतांक मिश्र बताते है कि देश में विभिन्न सम्वतों की शुरुआत का तरीका भी अलग-अलग है। कुछ सम्वत पूर्णिमा से शुरू होते हैं, जबकि अन्य अमावस्या से शुरू होते हैं। इसका कारण यह है कि विभिन्न सम्वतों का अपना एक विशिष्ट तरीका और महत्व होता है। विक्रम सम्वत सूर्य सिद्धांत पर आधारित है, जबकि महर्षि पराशर का पंचांग चंद्रमा की गति पर आधारित है। शरद पूर्णिमा का महत्व भी महर्षि पराशर के पंचांग में विशेष रूप से उल्लेखित है।

इन सम्वतों का निर्माण और उनका महत्व समझने से हमें भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की गहराई में जाने का अवसर मिलता है। डॉ मिश्र बताते हैं कि विक्रम सम्वत की शुरुआत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में आती है। यह राजा विक्रमादित्य द्वारा शुरू किया गया था और इसका उपयोग उत्तर भारत में व्यापक रूप से किया जाता है। इसी तरह महर्षि पराशर के पंचांग की शुरुआत आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है, जो आमतौर पर सितम्बर या अक्टूबर में आती है। यह पंचांग महर्षि पराशर द्वारा बनाया गया था और इसका उपयोग हिंदू पंचांग में व्यापक रूप से किया जाता है। इसी तरह शालिवाहन शाक की शुरुआत चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होती है, जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में आती है। यह कैलेंडर शालिवाहन नामक एक राजा द्वारा शुरू किया गया था और इसका उपयोग दक्षिण भारत में व्यापक रूप से किया जाता है।

कलियुग की शुरुआत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि से होती है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवम्बर में आती है। यह कैलेंडर भगवान कृष्ण के अवतार के बाद का युग माना जाता है और इसका उपयोग हिंदू पंचांग में व्यापक रूप से किया जाता है

—भारतीय सम्वतों का महत्व और उनका कैलेंडर से अंतर

हर सम्वत का अपना एक विशिष्ट महत्व और लॉजिक होता है। सम्वत और कैलेंडर दो अलग-अलग शब्द हैं जिनका अर्थ और उपयोग भी अलग-अलग है। सम्वत समय और काल को प्रदर्शित करता है, जबकि कैलेंडर एक विशिष्ट प्रणाली है जिसमें दिन, महीने और वर्षों को व्यवस्थित किया जाता है। भारतीय सम्वतों, विशेषकर विक्रम और शक सम्वत, समय गणना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जो हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्मों में तिथियों, महीनों और वर्षों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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