भीलवाड़ा, 3 नवंबर (Udaipur Kiran) । भीलवाड़ा जिले के उपखंड मुख्यालय मांडल के प्रताप नगर चैक (कुम्हार मोहल्ले) में दीपावली के बाद अन्नकूट महोत्सव के अवसर पर आज कुम्हार समाज की अनोखी परंपरा देखने को मिली, जिसमें गधों की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और आधुनिक संसाधनों के युग में भी इसे जीवंत बनाए रखा गया है। कुम्हार समाज के पंच पटेलों द्वारा वर्षों पहले लिए गए इस निर्णय को आज भी बड़ी श्रद्धा और उत्साह से निभाया जाता है।
गोपाल कुम्हार ने बताया कि पहले जब खेती-बाड़ी में बैलों की भूमिका अहम थी, तो किसान उन्हें सजाकर और उनकी पूजा कर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते थे। उसी प्रकार, कुम्हार समाज के लिए गधे (वैशाखी नंदन) उनके रोजगार का मुख्य साधन थे। गधों की मदद से तालाबों से मिट्टी ढोकर घरों तक पहुंचाई जाती थी, जिससे मिट्टी के बर्तन बनाने का काम होता था। इसी कारण समाज के पंच पटेलों ने गधों की पूजा की परंपरा शुरू की, जो आज भी चली आ रही है।
दीपावली के बाद प्रताप नगर चौक में गधों को विशेष रूप से नहलाया और सजाया जाता है। उन्हें रंग-बिरंगे रंगों से सजाने के बाद माला पहनाई जाती है और फिर चैक पर लाया जाता है। वहां पंडित जी द्वारा गधों की पूजा कर उनका मुंह मीठा कराया जाता है। इसके बाद उनके पैरों में पटाखे बांधे जाते हैं और गधों को दौड़ाया जाता है। यह दृश्य देखने लायक होता है, जब गधे दौड़ते हैं और लोग उनके पीछे-पीछे भागते हुए हंसी-ठिठोली करते हैं। यह कार्यक्रम मनोरंजन और परंपरा का अद्भुत संगम बन जाता है।
मांडल और आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में लोग इस अनोखी पूजा को देखने के लिए आते हैं। यहां तक कि दूर-दराज से भी लोग विशेष रूप से इस आयोजन में शामिल होने पहुंचते हैं। पूरे आयोजन में कुम्हार समाज के परिवारजन और युवा एक साथ इकट्ठे होते हैं, जिससे समाज में एकता और सामूहिकता की भावना बढ़ती है।
ग्रामीणों ने बताया कि जिस प्रकार किसान अपने बैल और गाय की पूजा करते हैं, उसी प्रकार कुम्हार समाज अपने रोजगार के साधन गधों का पूजन करता है। एक समय था जब आवागमन और मिट्टी ढोने के लिए कोई अन्य साधन नहीं था, और ऐसे में गधे ही परिवहन का मुख्य जरिया थे। इस परंपरा को निभाते हुए समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी संजोए हुए है।
भले ही आज के समय में मिट्टी ढोने और बर्तन बनाने के लिए आधुनिक संसाधनों का उपयोग बढ़ गया है, लेकिन कुम्हार समाज अपनी इस परंपरा को छोड़ना नहीं चाहता। गधों की पूजा करते समय समाज के लोग अपने पूर्वजों और उनके संघर्षों को भी याद करते हैं। यह आयोजन एक सांस्कृतिक धरोहर की तरह है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी परंपराओं से जोड़ता है।
पूजा के बाद गधों को दौड़ाने के साथ-साथ युवा जमकर आतिशबाजी भी करते हैं। रंग-बिरंगे पटाखों की रोशनी से पूरा माहौल उत्सवमय हो जाता है। यह आयोजन न केवल परंपरागत महत्व रखता है, बल्कि मनोरंजन और सामाजिक मेल-मिलाप का भी प्रमुख माध्यम बन गया है। इस तरह, मांडल में दीपावली के बाद अन्नकूट महोत्सव पर गधों की पूजा का यह आयोजन न केवल कुम्हार समाज की सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि पूरे जिले में एक अनूठी पहचान भी बना चुका है।
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(Udaipur Kiran) / मूलचंद