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शाहपुरा में पशुओं को रोगमुक्त करने के लिए अनूठा उत्सव

शाहपुरा में पालतू जानवरों को रोगमुक्त करने के लिए मनाया आस्था और परंपरा का अनूठा उत्सव ी
शाहपुरा में पालतू जानवरों को रोगमुक्त करने के लिए मनाया आस्था और परंपरा का अनूठा उत्सव ू
शाहपुरा में पालतू जानवरों को रोगमुक्त करने के लिए मनाया आस्था और परंपरा का अनूठा उत्सव ़
शाहपुरा में पालतू जानवरों को रोगमुक्त करने के लिए मनाया आस्था और परंपरा का अनूठा उत्सव

मूलचन्द पेसवानी

भीलवाड़ा, 22 अगस्त (Udaipur Kiran) । जिले में आस्था और परंपरा का गहरा संबंध ग्रामीण जीवन में देखने को मिलता है, और इसका एक अनूठा उदाहरण शाहपुरा जिले के ईरांस गांव में देखने को मिला। यहां परंपरा और विश्वास के चलते ग्रामीणों ने गुरुवार को अपने पालतू जानवरों को रोगों से मुक्ति और सर्पदंश की घटनाओं से बचाने के लिए विशेष आयोजन किया। इस आयोजन के दौरान पूरे गांव ने एक दिन के लिए कृषि कार्य बंद रखा और अपने जानवरों को ज्योत में निकाला।

शाहपुरा व भीलवाड़ा जिले की सीमा पर स्थित ईरांस गांव में पालतू जानवरों को ज्योत में निकालने की यह परंपरा ग्रामीण आस्था और परंपरा का एक अद्वितीय उदाहरण है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है, बल्कि गांव के लोगों को एकजुट करने और उन्हें अपनी परंपराओं से जोड़ने का भी काम करता है। ग्रामीणों का विश्वास है कि इस धार्मिक प्रक्रिया से न केवल उनके जानवर स्वस्थ रहते हैं, बल्कि गांव में शांति और समृद्धि भी बनी रहती है।

आस्था और परंपरा का महत्त्व

ईरांस गांव में यह प्रथा लंबे समय से चली आ रही है, जिसमें ग्रामीण तेजाजी महाराज, आंवण माताजी, बालाजी, खेड़ाखुट माताजी, और मारकनाथजी की ज्योत लाकर एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान के दौरान ग्रामीण अपने पालतू जानवरों जैसे गाय, भैंस, बकरी, भेड़, और घोड़े को ज्योत में निकालते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस धार्मिक प्रक्रिया से जानवरों को विभिन्न रोगों से मुक्ति मिलती है और गांव में सर्पदंश की घटनाओं से भी बचाव होता है।

ज्योत की शक्ति और तेजाजी महाराज का आशीर्वाद

ईरांस में नेहरू युवा मंडल से जुड़े मुकेश कुमार चोधरी ने बताया कि ग्रामीणों का विश्वास है कि तेजाजी महाराज की आस्था से गांव में सर्पदंश की घटनाओं से मुक्ति मिलती है। इस विश्वास के चलते हर वर्ष यह आयोजन होता है, जिसमें गांव के पुजारी द्वारा तेजाजी महाराज और अन्य देवी-देवताओं की ज्योत लाकर, उसे गांव के मुख्य स्थान पर स्थापित किया जाता है। ग्रामीण इस ज्योत के चारों ओर अपने पालतू जानवरों को लेकर आते हैं और उन्हें ज्योत में निकालते हैं।

इस आयोजन के लिए गांव में एक दिन की छुट्टी की घोषणा की जाती है, और उस दिन कोई भी कृषि कार्य नहीं किया जाता है। इस बार यह आयोजन आज किया गया। इसका निर्णय गांव के लोग आपस में सलाह कर करते है। ग्रामीणों का मानना है कि इस दिन खेती में काम करने से तेजाजी महाराज नाराज हो सकते हैं, जिससे गांव में सर्पदंश और अन्य बुराइयों का खतरा बढ़ सकता है।

गांव में उत्सव का माहौल

इस अनूठे आयोजन के दौरान गांव में उत्सव का माहौल होता है। ग्रामीण अपने पालतू जानवरों को सजा-धजा कर लाते हैं और उन्हें ज्योत में निकालते हैं। इसके बाद तेजाजी महाराज के मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है और गांव की सुख-शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। ग्रामीण अपने परिवारों के साथ इस धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेते हैं और इसे पूरे श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते हैं।

समुदाय की एकता और सामूहिक प्रार्थना

इस आयोजन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह गांव के सभी निवासियों को एक साथ जोड़ता है। पूरे गांव के लोग एकजुट होकर इस धार्मिक प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं, जिससे समुदाय की एकता और सहयोग की भावना मजबूत होती है। इस सामूहिक प्रार्थना का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं, बल्कि पूरे गांव की समृद्धि और सुरक्षा के लिए होता है।

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(Udaipur Kiran) / मूलचंद

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