West Bengal

यूजीसी पर भाजपा की नीतियों का पालन करने और उच्च शिक्षा की स्वायत्तता कमजोर करने का आरोप : ब्रात्य बसु

पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु

कोलकाता, 31 जनवरी (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री ब्रात्य बसु ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) पर उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को कमजोर करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यूजीसी द्वारा हाल ही में तैयार किए गए नियम भाजपा की नीतियों के अनुरूप हैं।

यूजीसी ने हाल ही में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और अकादमिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के उपाय नामक मसौदा नियमावली जारी की थी।

राज्य शिक्षा विभाग ने इस मसौदे की समीक्षा के लिए आठ सदस्यीय समिति गठित की, जिसने अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर दी हैं।

ब्रात्य बसु ने यह भी आरोप लगाया कि यूजीसी राज्य सरकार के मुख्यमंत्री को राज्य विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति नियुक्त करने के निर्णय को निष्प्रभावी करने का प्रयास कर रहा है।

बसु ने कहा कि राज्य सरकार मुख्यमंत्री को कुलाधिपति बनाना चाहती है, लेकिन यूजीसी के प्रतिनिधि, जो हाल ही में बंगाल आए थे, उन्होंने इसके खिलाफ बात की और इसके बजाय एक समान शिक्षा नीति लागू करने की वकालत की।

हालांकि, उन्होंने यूजीसी अध्यक्ष ममिदाला जगदीश कुमार का नाम नहीं लिया, लेकिन उनकी टिप्पणी से स्पष्ट था कि उनका इशारा उन्हीं की ओर था।

राज्य उच्च शिक्षा विभाग ने इस मसौदे की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाई थी, जिसे 31 जनवरी तक अपनी रिपोर्ट देनी थी।

बसु ने कहा कि यूजीसी का यह मसौदा भारत की बहुलतावादी परंपराओं और मूल्यों के खिलाफ जाता है और एकरूप संरचना थोपने का प्रयास करता है।

पूर्व उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के कुलपति और समिति के सदस्य ओमप्रकाश मिश्रा ने कहा कि हमारे विचार में, राज्य को इस मसौदे में प्रस्तावित कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया का विरोध करना चाहिए, क्योंकि इसमें राज्य की भूमिका समाप्त कर दी गई है और केंद्रीय प्राधिकरण को अत्यधिक अधिकार दिए गए हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि समिति इस विचार का भी विरोध करती है कि कुलपति कोई गैर-अकादमिक व्यक्ति हो सकता है।

मिश्रा ने सुझाव दिया कि एक केंद्रीय स्तरीय समिति बनाई जानी चाहिए, जिसमें राज्यों के प्रतिनिधियों को पर्याप्त संख्या में शामिल किया जाए, ताकि यूजीसी के मसौदे की समीक्षा की जा सके और सभी हितधारकों की राय को समाहित किया जा सके।

(Udaipur Kiran) / ओम पराशर

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