Haryana

गुरुग्राम में कश्मीरी लडक़ी के दो अंगों का एक साथ हुआ प्रत्यारोपण

लीवर व किडनी प्रत्यारोपण के बाद अपने पिता के साथ रिजवाह।

-जन्म से ही एक गंभीर बीमारी से जूझ रही थी रिजवाह

गुरुग्राम, 26 मई (Udaipur Kiran) । यहां के डॉक्टरों ने मात्र 10 साल की बच्ची के दो अंगों का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण करके उसे जीवनदान दिया है। बेहद ही जटिल इस प्रक्रिया को पूरी सावधानी से करके डॉक्टर्स ने इतिहास रच दिया है। लडक़ी की सर्जरी में 12 घंटे लगे। डॉक्टर्स ने इसे दुर्लभ प्रत्यारोपण बताया। भारत में सालाना 7 से 10 तक ही इस तरह के केस होते हैं।

डॉक्टर्स का कहना है कि ऐसे लीवर और किडनी दोनों का एक साथ प्रत्यारोपण भारत में कम ही होते हैं। ज्यादातर विदेशी मरीजों में यह प्रत्यारोपण होते हैं। भारत में ऐसे ऑपरेशन की संख्या हर साल मात्र 7 से 10 तक ही होती है। डॉक्टर के मुताबिक छोटी बच्ची रिजवाह का केस बहुत ही मुश्किल था। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। रिजवाह की मां डोनर बनने वाली थीं। इसके लिए जांच की गई। जांच में पता चला कि वह गर्भवती हैं। ऐसे में वह अंगदान नहीं कर सकी।

रिजवाह को करीब दो साल पहले प्राइमरी हाइपर ऑक्साल्यूरिया नाम की एक बहुत ही दुर्लभ बीमारी हुई थी। यह बीमारी जन्म से होती है और इसमें लीवर में एक जरूरी एंजाइम नहीं बनता। इस एंजाइम के बिना शरीर में ऑक्सलेट नाम का तत्व बढऩे लगता है, जो किडनी में जमा होकर बार-बार पथरी बनाता है। धीरे-धीरे इससे किडनी खराब हो जाती है। पारस हेल्थ गुरुग्राम में लीवर ट्रांसप्लांट और जीआई सर्जरी विभाग के डॉयरेक्टर डॉ. वैभव कुमार ने सोमवार को बताया कि प्राइमरी हाइपरऑक्साल्यूरिया देखने में तो किडनी की बीमारी लगती है, लेकिन इसकी असली वजह लीवर में होती है। इसी कारण इसका पता लगाना और इलाज करना मुश्किल होता है। रिजवाह के केस में सिर्फ किडनी ट्रांसप्लांट करने से फायदा नहीं होता। पहले लीवर की समस्या को ठीक करना जरूरी था, तभी उसका पूरा इलाज हो सकता था।

परिवार के दो सदस्य डोनर चुने गए

रिजवाह के परिवार ने भारत और विदेश के कई अस्पतालों में इलाज करवाने की कोशिश की, लेकिन कहीं पूरी मदद नहीं मिल पाई। फिर वे पारस हेल्थ गुरुग्राम पहुंचे। पिछले एक साल में रिजवाह की हालत इतनी खराब हो गई थी कि उसे बार-बार डायलिसिस कराना पड़ रहा था। उसे ठीक करने का एकमात्र तरीका लीवर और किडनी दोनों का ट्रांसप्लांट था। इसके लिए दो ऐसे डोनर चाहिए थे, जिनके अंग उसके शरीर से मेल खाते हों। आखिरकार परिवार के ही दो दूर के रिश्तेदार, उसके चचेरे भाई-बहन जांच के बाद डोनर के तौर पर चुने गए। इनकी मेडिकल और लीगल स्क्रीनिंग पूरी तरह से की गई। तभी ऑपरेशन की मंजूरी मिली।

(Udaipur Kiran)

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