जम्मू, 26 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । डोगरा राजा महाराजा हरि सिंह को शनिवार को यहां डोगरा ब्राह्मण प्रतिनिधि सभा द्वारा आयोजित परिग्रहण दिवस समारोह में श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस मौके पर डीबीपीएस के अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा, चेयरमैन एडवोकेट पी.सी. शर्मा, एनएमसी अध्यक्ष सुभाष शास्त्री और अन्य मौजूद रहे। उन्होंने कहा कि हमें महाराजा के प्रति सदैव आभारी रहना चाहिए क्योंकि उनके कार्यों ने हम सभी को भारत का नागरिक बनाया है।
इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। शासक ने 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत परिभाषित अपने अधिकार का प्रयोग करके ऐसा किया था। उन्होंने कहा कि डोगरा महाराजा ने उसी विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिस पर उनसे पहले दर्जनों अन्य रियासतों ने हस्ताक्षर किए थे। जिस दस्तावेज़ पर उन्होंने हस्ताक्षर किए थे, वह उनसे पहले और बाद में हस्ताक्षर करने वालों से किसी भी तरह से अलग नहीं था। उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर की तुलना में विलय पत्र पर देर से हस्ताक्षर किए जाने का सबसे प्रसिद्ध मामला भोपाल रियासत का था।
संयोग से भोपाल जो विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने वाली अंतिम रियासतों में से एक था अब मध्य प्रदेश की राजधानी के रूप में कार्य करता है। इस तथ्य के बावजूद कि भोपाल ने जम्मू-कश्मीर के 18 महीने बाद इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके बारे में कोई सवाल नहीं पूछा जाता है। उन्होंने कहा इसका कारण यह है कि रियासतों के लिए स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त, 1947) से पहले विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य नहीं था।
समारोह को संबोधित करते हुए डीबीपीएस के अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा ने कहा कि महाराजा हरि सिंह पर कुछ अनभिज्ञ और अज्ञानी लोगों ने विलय दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने में देरी करने का आरोप लगाया। इन लोगों का यह भी कहना है कि इस देरी के कारण जम्मू-कश्मीर में परेशानी हुई, लेकिन यह एकदम झूठ है। 1930 की शुरुआत में लंदन में राजकुमारों के एक गोलमेज़ सम्मेलन में उन्होंने स्पष्ट रूप से अपनी भारतीयता का प्रदर्शन किया था। उन्होंने कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है कि महाराजा हरि सिंह भारत में शामिल होने को लेकर कभी संदेह में थे।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा