धमतरी, 8 दिसंबर (Udaipur Kiran) ।जिले में जन-जन को साक्षर बनाने के उद्देश्य से उल्लास नवभारत साक्षरता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत छह दिसंबर तक 20010 शिक्षार्थी का पंजीयन कर शत प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर लिया गया है। साथ ही 2000 स्वयंसेवी शिक्षकों का भी पंजीयन हो गया है। उल्लास नवभारत साक्षरता कार्यक्रम के अंतर्गत 15 वर्ष से अधिक उम्र वाले उन सभी के लिए पढ़ने-लिखने का अवसर उपलब्ध करवाना है, जो किसी कारणों से साक्षरता और संख्या ज्ञान अर्जित नहीं कर सके।
धमतरी जिले के 20000 लोगों को साक्षर करने का लक्ष्य दिया गया था। इस कार्यक्रम के तहत धमतरी ब्लाक से 6213, कुरूद से 4700, मगरलोड से 4497 और नगरी से 4600 सहित कुल 20010 शिक्षार्थियों को साक्षर बनाने आनलाइन पंजीयन पूर्ण कर लिया गया है। साथ ही इन्हें पढ़ाने के लिए चारों ब्लाक के लिए 2000 स्वयंसेवी शिक्षकों का भी आनलाइन पंजीयन हो गया है। जिले के ब्लाक धमतरी में 510, कुरूद के 450, मगरलोड के 425 और नगरी 445 सहित कुल 1830 मोर उल्लास केंद्र के माध्यम से 15 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को साक्षर करने उल्लास कार्यक्रम चल रहा है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत उल्लास नव भारत साक्षरता कार्यक्रम सभी के लिए शिक्षा के लिए प्रारंभ की गई है। साक्षरता एक व्यक्ति के लिए बेहतर आजीविका व अवसरों तक पहुंचने के लिए जरूरी है। साक्षरता देश के लिए जनतंत्र की मजबूती व आर्थिक तरक्की एवं विकास के लिए जरूरी है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान, महत्वपूर्ण कौशल, व्यावसायिक कौशल, बुनियादी शिक्षा और सतत शिक्षा का विकास है। इस कार्यक्रम के तहत जिले में उल्लास प्रवेशिका की 10000, स्वयंसेवी शिक्षक मार्गदर्शिका 2000 और शिक्षार्थियों के लिए कार्य पुस्तिका 10000 पुस्तिकाओं का निश्शुल्क वितरण किया जाना है।
उल्लास कार्यक्रम के डीपीओ खेमेंद्र कुमार साहू ने बताया कि उल्लास नवभारत साक्षरता कार्यक्रम के लिए राज्य से 20000 का लक्ष्य दिया गया है। इस लक्ष्य को शत-प्रतिशत पूरा कर लिए है। मोर उल्लास केंद्रों में इस कार्यक्रम के तहत तीन पुस्तिकाओं का निश्शुल्क वितरण किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के शुरू होने से कई शहर व गांवों के युवक-युवतियां जो बचपन में किसी कारणवश पढ़ाई से दूर रहे व पढ़ने का मौका नहीं मिला, ऐसे लोगों को पढ़ने का अब दोबारा मौका मिलेगा। उल्लेखनीय है कि पहले गांव-गांव में पौढ़ शिक्षा का आयोजन किया जाता था और गांव के सामुदायिक भवन या किसी के घर में अनपढ़ महिला-पुरूषों को लिखना-पढ़ना सिखाया जाता था और कोर्स पूरा होने के बाद उन्हें प्रमाण पत्र भी दिया जाता था।
(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा