Jammu & Kashmir

इस बार 29 जनवरी बुधवार को आ रही है मौनी अमावस्या

Rohit

जम्मू, 25 जनवरी (Udaipur Kiran) । आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी वाणी का शुद्ध और सरल होना अति आवश्यक है। मौन व्रत अपने आप में एक अनूठा व्रत है। वैसे तो इस व्रत को कभी भी किया जा सकता है,पर धर्मग्रंथों में मौनी अमावस्या पर मौन रखने का विधान बताया गया है। अमावस्या माह में एक बार ही आती है,अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव है,माघ (मौनी) अमावस्या के विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया कि इस वर्ष माघ अमावस्या तिथि 28 जनवरी मंगलवार शाम 07 बजकर 37 पर शरू होगी और 29 जनवरी बुधवार शाम 06 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगी। सूर्योदय व्यापिनी माघ अमावस्या तिथि 29 जनवरी को है इसलिए इस वर्ष माघ (मौनी) मौनी अमावस्या 29 जनवरी बुधवार को होगी।

इस बार मौनी अमावस्या पर मकर राशि में सूर्य, बुध और चंद्रमा एक साथ विराजमान होकर त्रिवेणी योग का निर्माण करेंगे। इसके साथ ही इन सभी पर गुरु की नवम दृष्टि भी प्रभावी रहेगी। इसके अलावा, शुक्र के मीन राशि में स्थित होने से मालव्य राजयोग का निर्माण होगा। श्रवण नक्षत्र का संयोग भी इस दिन रहेगा। साथ ही, शश राजयोग और बुधादित्य राजयोग का भी प्रभाव रहेगा। यह दिन अत्यंत शुभ और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहेगा। इस दिन कुंभ प्रयागराज में दूसरा शाही सन्नान होगा। स्कंद पुराण के अनुसार मुनि शब्द से मौनी शब्द की उत्पत्ति हुई है। इस दिन मौन रखने से आत्मबल मजबूत होता है। इस दिन मौन रहकर पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है अगर किसी कारण आप गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान नहीं कर सकते हो तो घर में ही पानी में गंगाजल डाल कर स्नान अवश्य करें,ऐसा करने से गंगा स्नान का पूरा फल मिलता है।

मौनी अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए उपवास रखने से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, सूर्य, अग्नि, वायु, ऋषि, पशु-पक्षी समेत भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं। इस अमावस्या पर यदि मौन व्रत रखा जाए तो शीघ्र विवाह निश्चित है।इस दिन तिल, दूध और तिल से बनी मिठाइयों का दान दरिद्रता मिटाने वाला है। प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करें। ध्यान के साथ पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें। इस क्रिया को करते समय ‘ॐ पितृभ्य: नम:’ मंत्र का जाप करें। उसके बाद पितृसूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है।

(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा

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