
जम्मू, 12 अप्रैल (Udaipur Kiran) । साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधु परम हंस जी महाराज ने आज पूर्णिमा के अवसर पर राँजड़ी में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करते हुए कहा कि यह आत्मा इस देश की नहीं है। यह अमर लोक से आई है। इस शरीर में इंद्रियाँ अपने-अपने विषयों की तरफ आत्मा को खींचती हैं। फिर इस शरीर में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे राक्षस बैठे हुए हैं, जो बड़े-बड़ों को मिट्टी में मिला देते हैं। इनके संग आत्मा चैन से नहीं है। मन इस आत्मा से जो चाहता है, करवाता है। यह एक अपार सिद्धांत है कि गुरु के बिना काम नहीं बनेगा। सद्गुरु जो नाम देता है, वह संसार के नामों से अलग है। वह नाम अक्षर में नहीं आता है। लिखा नहीं जा सकता है, पढ़ा भी नहीं जा सकता है। वह चीज अंतःकरण को रोशन करती है। जब अंतःकरण रोशन हो जाता है तो वे शत्रु सामने दिखते हैं।
जैसे आपके स्मार्टफोन में तरंगें आ रही हैं, पर तरंगें आते दिख नहीं रही हैं। इस तरह आप नहीं जानते हैं कि आपके पास तरंगें कहाँ से आ रही हैं। मन तरंग में सारा संसार भूला हुआ है। शून्य में बैठकर मन तरंगें भेजता है। हम जो भी बोलते हैं, वह सब अक्षर में आते हैं, पर वह नाम निःअक्षर है। यंत्र खुद नहीं बज सकते हैं। इस तरह शरीर का कोई भी अंग आत्मा की ताकत के बिना काम नहीं कर सकता है। और आत्मदेव आँख बंद करके जो-जो मन कह रहा है, वह- वह करता जा रहा है। आत्मा की ऊर्जा से सब काम होता है बिना सद्गुरु के कुछ नहीं हो सकता है। साहिब ने ऐसे ही नहीं कह दिया कि गुरु और गोविंद दोनों खड़े हों तो पहले सद्गुरु के ही पाँव पड़ना है, क्योंकि वही गोविंद से मिलाते हैं।
साहिब जी ने आगे कहा कि आदमी मौत से बेखबर है। पहले दाँत धीरे-धीरे गिरते हैं, कमर धीरे-धीरे झुकेगी, फेफड़े कमजोर हो जाएंगे, याददाश्त कमजोर हो जाएगी, कानों से सुनना कम हो जाएगा, आँखों से दिखना कम हो जाएगा, किडनी पूरा काम नहीं करेगी, हृदय की धड़कन बढ़ेगी, चलना मुश्किल हो जाएगा और आप खटिया पर पड़ जाओगे। जैसे सूर्य पश्चिम की तरफ चलता है तो सब चीजें खत्म होती जाएंगी। इस तरह यह जिंदगी दो घड़ी की है। भजन का समय मन और माया नहीं देंगे। बार-बार अपने जाल में रखते हैं। शरीर क्षीण होता जाएगा। वास्तविकता यह है कि 37 साल के बाद अधेड़ अवस्था शुरू होती है। उसमें भी जोर कम हो जाता है। मौत बहुत चालाक है। अकुलाते हुए आती है। जैसे वज्र का प्रहार होता है, इस तरह शरीर पर मन और माया प्रहार करते हैं। यह मृत्युलोक है, आप सावधान रहना। कुछ नहीं है आपका। यह मेरा, वह मेरा — सब चित्त का आभास है। कोई किसी का है नहीं।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
