Haryana

कैथल: साम्मण का यू चढ़ग्या म्हीना, सबकै मन म्हं खुस्सी छाई, सबकै घर म्हं आवै कोथली, म्हारै घरां भी आई

विचार एवं काव्य गोष्ठी में हिस्सा लेते कवि

कैथल, 21 जुलाई (Udaipur Kiran) । अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा की कैथल इकाई द्वारा महर्षि वेदव्यास जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित विचार एवं काव्य गोष्ठी में रचनाकारों ने अपने शब्दों में गुरु की महिमा का बखान किया और पैसा कमाने के लिए विदेश जाने वाले युवाओं को देश की महिमा का ज्ञान दिया। रविवार को पूंडरी के गुरु ब्रह्मानंद आश्रम बंदराना में आयोजित कार्यक्रम में साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी एवं मिशन हरियाणा के अध्यक्ष रोशन वर्मा मुख्य अतिथि थे।

संचालन हिंदी-हरियाणवी के छंदकवि सतपाल पराशर आनन्द ने किया। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा की ज़िला इकाई के अध्यक्ष डाॅ. तेजिंद्र ने कहा कि महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत एक युद्ध-कथा होने के साथ-साथ धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं जीवन-दर्शन का बोध कराने वाला ग्रंथ है। स्वामी आत्मानंद सरस्वती ने कहा कि गुरु एक कुंभकार की भांति अपने शिष्य को गढ़ता है। मदन लाल ने कहा कि मनुष्य को योग्य गुरु का चयन करके उन्हें अपना मार्ग-दर्शक बनाना चाहिये। मुख्य अतिथि रोशन वर्मा ने अपने कालेज जीवन के समय के गुरुजन रामकुमार आत्रेय, डाॅ० भगवान दास निर्मोही और डाॅ. राणाप्रताप सिंह गन्नौरी को याद किया और उनसे जुड़े प्रसंग सुनाये।

गुरु-जीवन से खुश्बू ले, जीवन को चंदन कर लें

काव्य गोष्ठी में अधिकतर रचनाकारों ने हरियाणवी बोली में अपने उधर प्रकट किए। वरिष्ठ हरियाणवी साहित्यकार महेंद्र पाल सारस्वत कण्व द्विवेदी ने गुरु के प्रति कृतज्ञता का भाव ज्ञापित करते हुए कहा : धन-धन सतगुरु देह धारकै, पार तार दिए पल भर म्हं। तत्व मसि का ज्ञान-दान कर, ले गए मुक्ति के घर म्हं। गुरु-वंदन का आह्वान करते हुए डा. तेजिंद्र ने कहा : आओ गुरु-वंदन कर लें। गुरु का अभिनंदन कर लें। गुरु-जीवन से खुश्बू ले, जीवन को चंदन कर लें। सावन में मायके से आने वाली कोथली का वर्णन करते हुए हरियाणवी देसी कवि सतबीर जागलान ने कहा : साम्मण का यू चढ़ग्या म्हीना, सबकै मन म्हं खुस्सी छाई।

सबकै घर म्हं आवै कोथली, म्हारै घरां भी आई। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रकट करते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी से स्वामी विवेकानंद युवा पुरस्कार-विजेता राजेश भारती ने कहा : रोज़ी-रोटी घर देता है। दाता झोली भर देता है। पंछी को वो पर देता है। उड़ने को अम्बर देता है। विदेश में पैसा कमाने गये युवाओं से हिंदी-हरियाणवी के कवि सतपाल पराशर आनन्द ने इन शब्दों में प्रश्न किये, पीस्यां खातर देस छौड़कै, दूर गया क्यूं मन्नै बता। अपणी भासा देस छोड़कै, दूर गया क्यूं मन्नै बता। महान गुरुओं को नमन करते हुए गोष्ठी का समापन हुआ।

(Udaipur Kiran) / नरेश कुमार भारद्वाज / SANJEEV SHARMA

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