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अगस्त वर्ष 1993 से 2000 के बीच नियुक्त अध्यापकों का होगा नियमितीकरण, वेतन भुगतान भी होगा

इलाहाबाद हाईकोर्ट

– अपर महाधिवक्ता ने सरकार के फैसले के लिए कोर्ट से मांगा समय

– कोर्ट ने कहा, माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने सरकार को नहीं दी सही जानकारी

– सरकार को गुमराह करने वाले अधिकारियों पर हो कार्रवाई

– आदेश मुख्य सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री को 48 घंटे में भेजने का निर्देश

प्रयागराज, 05 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता ने स्वीकार किया कि यूपी में 33जी के तहत 7 अगस्त 1993 से दिसम्बर 2000 के बीच नियुक्त एक हजार से अधिक तदर्थ अध्यापकों को नियमित करने पर शीघ्र ही सरकार निर्णय लेगी और वर्ष 2000 के बाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट के संजय सिंह केस में दिये गये फैसले के तहत फैसला लिया जाएगा।

यह भी कहा कि सरकार इन अध्यापकों को वेतन देने पर भी विचार कर रही है किन्तु पहले नियमितीकरण पर निर्णय ले लिया जाय। कोर्ट ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने सरकार को सही जानकारी नहीं दी। दो मुद्दों को मिक्स कर भ्रमित कर उलझा रखा है। सरकार को सही जानकारी न देकर तथ्य छिपाने वाले ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आदेश की प्रति मुख्यमंत्री के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने सरकार को सही तथ्य छिपाकर 9 नवम्बर 23 व 8 जुलाई 24 का परिपत्र जारी कराया। कोर्ट ने निबंधक अनुपालन को कहा है कि 48 घंटे में आदेश की प्रति मुख्य सचिव को भेजें ताकि कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री के समक्ष एक हफ्ते में पेश किया जा सके।

यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने विनोद कुमार श्रीवास्तव की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। याचिका की अगली सुनवाई 20 सितम्बर को होगी। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता आर के ओझा, वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे, और सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता अजीत कुमार सिंह ने पक्ष रखा।

कोर्ट द्वारा पारित आदेश पर अपर महाधिवक्ता कोर्ट में आये और आदेश के पालन के लिए कुछ समय मांगा। साथ ही आश्वासन दिया कि आदेश की जानकारी सरकार को देंगे। उम्मीद है सरकार सही निर्णय लेगी। कहा 1993 से 2000 तक नियुक्त एक हजार से अधिक अध्यापकों को नियमित किया जायेगा। इसके बाद नियुक्त अध्यापकों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार कार्यवाही की जायेगी। अपर महाधिवक्ता ने स्वीकार किया कि धारा 33जी का मुद्दा सरकार ने जवाबी हलफनामे में नहीं लिया है।

ओझा ने कहा कि सरकार केवल 33 जी (8) को ही देख रही है जबकि उसे 33 जी की पूरी स्कीम पर विचार करना चाहिए। धारा 33 जी ए को लेकर सरकार भ्रमित है। कहा गया कि कोर्ट ने अंतरिम आदेश से अध्यापकों को वेतन देने व सेवा जारी रखने का निर्देश दिया है। इसके बावजूद सरकार ने 8 नवम्बर 23 से वेतन भुगतान रोक रखा है। आदेश के खिलाफ विशेष अपील व एस एल पी खारिज हो चुकी है।

विशेष सचिव ने निदेशक माध्यमिक शिक्षा को 8 जुलाई 24 को आदेश दिया कि जिन्हें 9 नवम्बर 23 से हटाया गया है। हाई स्कूल के अध्यापकों को 25 हजार एवं इंटरमीडिएट के अध्यापकों को 30 हजार रुपये प्रतिमाह दिया जाए। इस सर्कुलर का शिक्षा विभाग को पालन करना चाहिए, वह बाध्यकारी है।

कोर्ट ने कहा कि 7 अगस्त 93 से दिसम्बर 2000 तक नियुक्त अध्यापकों का नियमितीकरण धारा 33जी के तहत होना चाहिए। अधिकारी 2000 के पहले नियुक्त एवं इसके बाद नियुक्त दो मुद्दों को एक साथ मिक्स कर सरकार को गुमराह कर रहे हैं। वे ऐसा जानबूझ कर कर रहे हैं जिसके कारण सही निर्णय नहीं लिया जा रहा है। कोर्ट ने अगली तिथि पर कृत कार्यवाही की जानकारी मांगी है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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