
नागदा 23 मई (Udaipur Kiran) । पेट की आग बुझाने और परिवार की परवरिश के बोझ से दबे उस शख्स ने पटरियों पर दौड़ती रेलगाड़ियों में चाय बैचते आधी जिंदगी गुजार दी। उसकी दिनचर्या में तकरीबन 15 घंट प्रतिदिन रोजी-रोटी के लिए मशक्त। सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक यात्रियों के बीच सफर और कंधों पर चाय की केटली का बोझ भी शुमार। दो प्रतिभावान बच्चों की शिक्षा पूरी होने के बाद अच्छे दिन आने के इंतजार में था कि एक दिन एकाएक तकरीबन 18 वर्ष का मेंधावी बेटा आदित्य मकवाना अकस्मात इस दुनिया से अलविदा हो गया। उस शख्स पर मानों पहाड़ं टूट पड़ा। दूसरा बेटा महेंद्र इन दिनों पोलीटेकनिक कॉलेज उज्जैन में अंतिम वर्ष का छात्र है।
बुढे माता-पिता की परवरिश और दूसरे बेटे महेद्र की शिक्षा की विवशता में दो जून की रोटी के लिए जुझ रहा था कि गत वर्ष पिता अंबाराम मकवाना गांव पनवास वाले भी चल बसें। पिता की पहली पुण्य तिथि जब आई तो इस शख्स की सोच ने एक नई मिसाल पेश की। अजा वर्ग के इस इंसान ने शहर के अलावा दूरदराज में आंचलिक क्षेत्रों में बोर्ड की परीक्षा में उच्चतम अंक लाने वाले अपनी ही बिरादरी के मेघावी बच्चों की तलाश की। ऐसे बच्चें जो बोर्ड की परीक्षा कक्षा 10वी और 12 वीं में उच्चतम अंको से सफल हुए। पिता की पुण्यतिथि के दिन इन बच्चों को पुरस्कृत करने का बीड़ा उठाया। पिता की तस्वीर को सामने रखकर लगभग एक दर्जन बच्चों को पुरस्कृत किया।
यह सब कुछ सुरेश मकवाना नामक व्यक्तित्व से जुड़ा है। जोकि विद्यानगर नागदा जिला उज्जैन की एक तंगगली में तो रहता है, लेकिन उसका यह चिंतन आलीशन बंगलों में रहने वाले लोगों को भी पीछे छोड़ता है, हालांकि यह बात एक सामान्य है, लेकिन उस इंसान की सोच, चिंतन ने इस कहानी को समृद्ध किया।
सादगी से परिपूर्ण इस आयोजन में ना कोई प्रचार- प्रसार ना कोई दिखावा ना कोई समाज के लोग। बस परिजनो तक सिमटा पिता कों समर्पित कार्यक्रम।
ना कोई माईक और ना मंच पर कोई राजनेता।
पिता की सोच को समर्पित
सुरेश मकवाना का कहना हैकि मेरा प्रतिभावान बेटा स्वः आदित्य जब शिक्षा ग्रहण कर रहा था तब पिताजी स्व अंबारामजी जब बारिश होती या कड़ाके की सर्दी तब अपने स्वं. पोते आदित्य को विद्यानगर से स्कूल प्रकाश नगर तक कंधे पर बैठा कर ले जाते थे। उनके मन मे निश्चित ही शिक्षा को बढावा देने की प्रति यह सोच थी। इस चिंतन को आगे बढाते स्व. पिता की प्रथम पुण्यतिथि पर सिमाज के मेघावी बच्चों को पुरस्कृत करने का निर्णय लिया। सुरेश ने इस कार्यक्रम का तानाबाना शहर की युवराज धर्मशाला में बुना। महज परिवार के लोग उपस्थित। यह कार्यक्रम राजनीति से कौसो दूर। पुरस्कार ऐसा जैसी कहा जा सकता है कि बहुमूल्य तो नहीं लेकिन अमूल्य।
दिंवगत पिता की तस्वीर को साक्षी बनाकर बच्चों को एक कलम और एक कॉपी भेंट की। बच्चों को सादा भोजन प्रसादी के साथ समापन हुआ।
इन प्रतिभावान को पुरस्कार- जिन छात्र-छात्राओं को पुरस्कृत किया गया उन में से 70 से लेकर 82 प्रतिशत तक के मेघावी को यह पुरस्कार मिले। प्रियंका पिता दिनेश कक्षा 10 वी गांव लसुड़िया विनीता पिता संग्राम गांव पिपलौदा कक्षा 10 वी गांव लसुड़ियां, हिमांशु पिता चेतन कक्षा 12 वी गांव उमरना, ओमप्रकाश पिता गोवर्धन कक्षा 12 वीं गांव नायन, विनोद पिता कन्हैयालाल कक्षा 10 वी गांव उमरना, हर्षिता पिता सुनील कक्षा 8 वीं गांव लसुड़िया, प्रवीण पिता दीपक कक्षा 12 वी भगतपूरी के नाम उल्लेखनीय है।
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(Udaipur Kiran) / कैलाश सनोलिया
