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भारत में लोकतंत्र और असहमति की परंपरा हजारों साल से मौजूद : आरिफ मोहम्मद

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान

जयपुर, 17 अप्रैल (Udaipur Kiran) । बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि बहुत से लोग यह मानते हैं कि भारत में लोकतंत्र 1947 में आज़ादी के बाद आया, जबकि वास्तव में लोकतंत्र भारत में हजारों वर्षों से मौजूद है। महात्मा बुद्ध से भी पहले वर्तमान बिहार में स्थित वैशाली गणराज्य एक लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला राज्य था। असहमति की परंपरा भी भारत में प्राचीन काल से रही है।

खान गुरुवार को जयपुर स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की 98वीं जयंती पर व्याख्यान माला को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि उस समय भारत में कई ऐसे राज्य थे, जहां जनता मताधिकार के माध्यम से राजा का चुनाव करती थी। भले ही भारत राजनीतिक रूप से विभाजित था और कई क्षेत्रों में राजतंत्र प्रचलित था, फिर भी भारतीय संस्कृति में असहमति की एक समृद्ध परंपरा रही है।

रामायण का उदाहरण देते हुए खान ने कहा कि भगवान राम के राजतिलक से पहले राजा दशरथ ने अपनी पत्नी कैकेयी को वचन दिया था, जिसके अनुसार राम को वनवास जाना पड़ा। इसके बाद भरत ने राम को वनवास से लाने का प्रयास किया। जब राम नहीं लौटे तो भरत उनकी पादुकाएं लेकर आए और उन्हें ही गद्दी पर रखकर राज्य का संचालन किया। राज्यपाल ने कहा कि असहमति भी सभ्यता की मर्यादा में रहकर होनी चाहिए। जब लोग आपस में चर्चा करते हैं, तो मतभेद होते हैं, लेकिन इन्हीं चर्चाओं से सही निष्कर्ष निकलकर सामने आते हैं।

उन्होंने लोकतंत्र और स्मृति को लेकर ऋग्वेद, यजुर्वेद, रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों का भी उल्लेख किया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ अपने संबंधों को याद करते हुए कहा कि उनसे कई मुद्दों पर उनकी असहमति रहती थी। वे मानते थे कि चंद्रशेखर कुछ ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करते थे जो विभाजनकारी राजनीति करते हैं, लेकिन बाद में समझ में आया कि चंद्रशेखर का हृदय विशाल था और वे ऐसे किसी भी कार्य को समर्थन नहीं देते थे जो राष्ट्र को कमजोर करे। वे असहमति रखने वालों को भी साथ लेकर चलने का प्रयास करते थे, ताकि वे सीमाएं न लांघें। उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत थे और जीवनभर निर्बलों और नौजवानों के लिए संघर्ष करते रहे।

पूर्व नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने चंद्रशेखर को याद करते हुए कहा कि जब वे राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे, तब चंद्रशेखर ने उनके कार्यालय का उद्घाटन किया था। उन्होंने उनके साथ पदयात्रा में भी भाग लिया था। राठौड़ ने बताया कि चंद्रशेखर ने कांग्रेस में रहते हुए आपातकाल का विरोध किया था, जिसके चलते उनका अखबार बंद हुआ और वे जेल भी गए। उन्होंने कहा कि जब 1990 में वे पहली बार विधायक बने और भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री थे, तब सरकार अल्पमत में आ गई थी। उस समय चंद्रशेखर ने सलाह दी कि सरकार बचाई जाए। तब 26 विधायकों ने जनता दल से अलग होकर नया दल बनाया और सरकार को समर्थन दिया। राठौड़ ने कहा कि आज देश में जितने भी प्रमुख राजनीतिक दल हैं, उनमें कई ऐसे शीर्ष नेता हैं जिन्हें चंद्रशेखर ने राजनीतिक रूप से तराशा।

वरिष्ठ समाजवादी नेता और पूर्व सांसद पंडित रामकिशन शर्मा ने कहा कि असहमति के बिना लोकतंत्र की कल्पना ही नहीं की जा सकती, लेकिन आज असहमति रखने वालों को दुश्मन माना जाता है, जो उचित नहीं है। लोकतंत्र तभी सुदृढ़ होगा जब उसमें स्वस्थ असहमति की गुंजाइश बनी रहे। व्याख्यान माला को भाजपा विधायक गोपाल शर्मा और कार्यक्रम आयोजक लोकेश कुमार साहिल ने भी संबोधित करते हुए चंद्रशेखर की राजनीतिक यात्रा और योगदान पर प्रकाश डाला।

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(Udaipur Kiran) / रोहित

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