Chhattisgarh

तीर्थंकर परमात्मा के जन्म पर तीनों लोक में छा जाती है प्रसन्नता:सकीर्ति श्री महाराज

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जैन मुनि।
गांधी मैदान के पास आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित जैन समाज की महिलाएं।
गांधी मैदान के पास आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित नगरवासी।

धमतरी, 9 अप्रैल (Udaipur Kiran) ।श्री महावीर जयंती उत्सव समिति धमतरी द्वारा विश्व नवकार दिवस के उपलक्ष्य में नौ अप्रैल को गांधी मैदान के पास सामूहिक नवकार मंत्र जाप का आयोजन किया गया। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौ अप्रैल को विश्व नवकर दिवस घोषित किया है उसी परिपेक्ष्य में यह आयोजन किया गया। पूरे देश में जहां जहां धर्म या अहिंसा धर्म के अनुयायी रहते है वहां वहां सामूहिक नवकार मंत्र के जाप का आयोजन किया गया।सुबह आठ बजे से साढ़े आठ बजे तक गांधी चौक में नवकार मंत्र जाप किया गया। उसके बाद विकार से संस्कार की ओर विषय पर सर्व धर्म के लिए प्रवचन का आयोजन किया गया। गांधी मैदान के मंच से अध्यात्म योगी उपाध्याय प्रवर परम पूज्य महेंद्र सागर महाराज, उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर महाराज साहेब आदि ठाणा, हंसकीर्ति श्री महाराज साहेब ने प्रवचन दिया।

हंसकीर्ति श्री महाराज साहेब ने बताया कि जब किसी महापुरुष का जन्म होता है तो केवल परिवार नहीं वरन पूरा समाज लाभान्वित होकर खुशी से झूम उठता है। जब किसी तीर्थंकर परमात्मा का जन्म होता है तो तीनों लोक प्रसन्न हो जाता है। क्योंकि परमात्मा का जन्म तीन लोक में रहे हुए समस्त प्राणियों के लिए आत्म कल्याण का सुअवसर लेकर आता है। परमात्मा के पांच कल्याणक च्यवन कल्याणक, जन्म कल्याणक, दीक्षा कल्याणक, केवलज्ञान कल्याणक और निर्वाण कल्याणक होते है। परमात्मा के जन्म के समय सौधर्मेंद्र देव उन्हें मेरु पर्वत पर ले जाकर उनका जन्म महोत्सव मनाते है। भगवान के बचपन का नाम वर्धमान था। भगवान वर्धमान से महावीर कैसे बने। इसके लिए शास्त्रों के माध्यम से बताया गया है कि परमात्मा जब आठ साल के थे। तब बालक्रीड़ा करते समय एक देव परीक्षा लेने आए। फिर भगवान के साथ क्रीड़ा करते हुए भगवान को अपने कंधे पर उठा लिए और अपना शरीर सात ताड़ जितना लंबा कर लिया। फिर भी परमात्मा बिल्कुल भी नहीं घबराए, और उस देव के सर पर एक मुष्टि का प्रकार किया। वो देव वहीं पर धराशायी हो गए। अपने वास्तविक रूप में आकर परमात्मा से क्षमा मांगकर अपने देव लोक में वापस में चले गए। उन्होंने संसार को जियो और जीने का उपदेश आपने दिया।

इंद्रियों ने शरीर को गुलाम बना दिया : विनम्र सागर

परम पूज्य विनम्र सागर महाराज ने बताया कि जहां सज्जनों के मुख से नवकार मंत्र का जाप होता है वह स्थान संस्कारों की गंध से महक उठता है। विकार और संस्कार एक दूसरे के विपरीत है। संस्कार एक वृक्ष की शीतल छाया के समान है। जबकि विकार गर्मी के भीषण उष्ण की तरह हमें जलाने वाला होता है। हमारे अंदर के विकारों की ताप को संतों की अमृत वाणी से शांत किया जा सकता है। परिवर्तन का कोई समय नहीं होता। जब हमारी चिंता आत्म विकास के चिंतन में बदल जाए वही जीवन में बदलाव का सुअवसर बन जाता है। हम जीवन को संस्कारों से भी भर सकते है और विकारों से भी। जीवन को उज्ज्वल बनाना है तो विकारों को दूर करके संस्कारों को जीवन में स्थान देना होगा। शुभ संकेत को समझना होगा।

(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा

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