Uttar Pradesh

थारू जनजाति की महिलाओं के हाथों का हुनर, दुनियाभर में बना रहा पहचान- डीएम

थारू जनजाति की महिलाओं के हाथों का हुनर, दुनियाभर में बना रहा पहचान
थारू जनजाति की महिलाओं के हाथों का हुनर, दुनियाभर में बना रहा पहचान

लखीमपुर खीरी, 25 नवंबर (Udaipur Kiran) । जिले की सांस्कृतिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक विरासत को वृहद स्तर पर उजागर करने के लिए जिले में पहली बार लखीमपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव से निश्चित रूप से पर्यटन को नया आयाम मिलेगा। आज जिले के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ रहा है।

महोत्सव मे बोलते हुए डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल ने कहा कि पलिया के मुजहा गांव में 1996 में बनी हवाई पट्टी के जरिए लखनऊ से दुधवा के बीच हेलीकाप्टर सेवा शुरू हो रही है। इससे दुधवा नेशनल पार्क के पर्यटन को निश्चित रूप से नए आयाम मिलेंगे। तराई के मिट्टी के उत्सव थीम पर आयोजित लखीमपुर महोत्सव 2024 में चार दिनों में पांच बड़े आयोजन होंगे, जिसमें कुल 54 कार्यक्रम होने हैं। इसमें 42 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं, जिसमें से 30 स्थानीय प्रतिभाओं को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका लखीमपुर महोत्सव में प्रदान किया जा रहा है। एक ही स्थान पर महोत्सव आयोजन कराने की परंपरा से हटकर लखीमपुर खीरी जिले में सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक विरासत से जुड़े स्थलों को पर्यटन के लिहाज से विकसित करने के उद्देश्य से पांच अलग-अलग स्थानो पर आयोजित किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि भारत नेपाल सीमा पर बसा खीरी जिला अपनी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। जिले के विस्तृत क्षेत्रफल में फैले दुधवा नेशनल पार्क के प्राकृतिक सौंदर्य और समृद्ध जैव विविधता जग जाहिर है। घने जंगलों में विचरण करते बाघ और तेंदुए, कुलांचे भरते हिरनों के झुंड, बड़े बड़े जलाशयों में कलरव करते रंग बिरंगे परिंदे सैलानियों को रोमांचित करते हैं। दुधवा नेशनल पार्क की सीमाओं पर बसी थारू जनजाति की अनूठी संस्कृति अद्भुत है। थारू जनजाति की महिलाओं के हाथों के हुनर से निर्मित हस्त शिल्प आज दुनियाभर में अपनी पहचान बना रहा है। जिले में छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध धार्मिक नगरी गोला गोकरननाथ का पौराणिक शिव मंदिर लाखों लोगों की गहन‌ आस्था का केंद्र है। ओयल का मेंढक शिव मंदिर अपनी अनूठी‌ वास्तु संरचना के लिए प्रसिद्ध है। खीरी जिले में जहां ईको टूरिज्म की तमाम संभावनाएं हैं, वहीं सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पर्यटन की भी अपार संभावनाएं हैं।

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(Udaipur Kiran) / देवनन्दन श्रीवास्तव

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