– हाई कोर्ट ने 39 साल पुराने मामले में डकैती के तीन आरोपितों को बरी करने का फैसला बरकरार रखा
प्रयागराज, 30 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को 1985 के एक डकैती के मामले में अभियोजन पक्ष के मामले में कई खामियां पाते हुए तीन आरोपितों को बरी करने के लोवर कोर्ट फैसले को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति सुरेन्द्र सिंह प्रथम की पीठ ने अभियुक्तों को बरी करने के खिलाफ सरकार की अपील पर अपने 44 पृष्ठ के फैसले में कहा, “जब हम मुकदमे के दौरान पेश किए गए साक्ष्यों का समग्र दृष्टिकोण लेते हैं और गवाहों द्वारा बताई गई अभियोजन पक्ष की कहानी की सत्यता का परीक्षण करते हैं, तो हम पाते हैं कि अभियोजन पक्ष आरोपी-प्रतिवादियों के खिलाफ सभी उचित संदेह से परे अपना मामला साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है।”
हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने 1985 में एक तर्कपूर्ण और विस्तृत आदेश पारित किया था जिसमें साक्ष्यों और गवाहों के बयानों की गहन जांच करने के बाद आरोपित को बरी कर दिया गया था और सही निष्कर्ष निकाला था कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। एफआईआर में लगाए गए आरोपों के अनुसार घटना के दिन, लगभग 9ः30 बजे, बुद्धि राम (मृतक) गाजीपुर की ओर जा रहा था, जब राज देव, विक्रमा, राज नारायण, राम आश्रय और राधेश्याम ने उन पर घात लगाकर हमला किया।
मृतक ने भागने की कोशिश की लेकिन उसे पकड़ लिया गया और उस पर तमंचों और लाठियों से हमला किया गया जिससे वह गम्भीर रूप से घायल हो गया। आरोपित विक्रम और राज नारायण ने कथित तौर पर बुद्धि राम के घुटनों पर 50 वार किए और उसके पैर मोड़ दिए जबकि राधेश्याम ने उस पर लात-घूंसों से हमला किया। हमलावरों ने उसकी पासबुक और कलाई घड़ी भी छीन ली। बाद में, वे उसके घर गए, गहने चुराए, घर में आग लगा दी, और उसके बेटे (देव नाथ) और एक अन्य ग्रामीण का पीछा किया, जो भागने में सफल रहे। उसके बाद, बुद्धि राम के बेटे, शिव प्रसाद (पीडब्लू-1), जिसने कथित तौर पर अपने पिता के खिलाफ हुए हमले को देखा, सीधे पुलिस चौकी गया और दो पुलिस कांस्टेबल और एक हेड कांस्टेबल को अपने घर बुलाया।
जब वे उसके घर पहुंचे तो उसे बताया गया कि उसके पिता को पुलिस स्टेशन ले जाया गया है, इसलिए वह अकेला ही पुलिस स्टेशन के लिए निकल पड़ा लेकिन रास्ते में उसके पिता चारपाई पर लेटे मिले, जिन्होंने उसे पूरी घटना बताई। बाद में, घायल बुद्धिराम की मृत्यु हो गई। आरोपितों पर धारा 147, 148, 149, 395, 436, 323, 325 और 506 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया। अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य और आरोपी प्रतिवादियों द्वारा दिए गए बचाव पक्ष के बयान के आधार पर, ट्रायल कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष आरोपित प्रतिवादियों के विरुद्ध लगाए गए सभी आरोपों को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है।
बरी होने के फैसले को चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की कि पीडब्लू-1 शिव प्रसाद और पीडब्लू-2 लच्छन राम के साक्ष्य और मेडिकल साक्ष्य से पता चलता है कि अभियोजन पक्ष ने सभी उचित संदेहों से परे अपना मामला साबित कर दिया है। सरकार की अपील के लम्बित रहने के दौरान दो आरोपितों की मृत्यु हो गई।
हाई कोर्ट ने अभियोजन साक्षी 1 के बयानों की विश्वसनीयता का परीक्षण करते हुए, न्यायालय ने पाया कि पी.डब्लू.-1 (मृतक का पुत्र) का साक्ष्य, अभियुक्त के प्रति उसकी शत्रुता के कारण, उत्कृष्ट गुणवत्ता का नहीं था। न्यायालय ने कहा कि साक्ष्यों से पता चलता है कि दोनों पक्षों के बीच कई सिविल और आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं, जिनमें पिछले हमले और चल रहे मामले शामिल हैं। अभियुक्त के खिलाफ झूठे आरोप लगाने की सम्भावना बढ़ गई।
अदालत ने इस तथ्य पर भी जोर दिया कि आरोपित द्वारा आभूषण लूटने और घर में आग लगाने के बारे में उसका विवरण भी असंगत था और बाद में स्वीकार किया गया था कि यह जानकारी उसे उसकी मां और भाभी से मिली थी। इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि घटनास्थल पर पुलिस कांस्टेबलों को लाने का उनका दावा अपुष्ट था क्योंकि किसी भी अधिकारी को गवाही देने के लिए नहीं बुलाया गया था। इन विसंगतियों को देखते हुए, न्यायालय ने कहा कि इससे उनकी गवाही की विश्वसनीयता पर गम्भीर संदेह उत्पन्न होता है तथा अभियोजन पक्ष के मामले में सम्भावित झूठ का संकेत मिलता है।
हाई कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के मामले में कई कमियां पाते हुए आरोपी व्यक्तियों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा और तदनुसार सरकार की अपील खारिज कर दी गई।
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे / प्रभात मिश्रा