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पेंशन के 24 साल की कानूनी लड़ाई में याची को मिली राहत

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

–कोर्ट ने पति को पेंशन तो नहीं दी किंतु पत्नी को बतौर पारिवारिक पेंशन एकमुश्त रकम देने का दिया आदेश

प्रयागराज, 22 मई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 साल पति व 12 साल पत्नी की कुल 24 साल से पेंशन व पारिवारिक पेंशन की कानूनी लड़ाई में पत्नी को बड़ी राहत दी है।

कोर्ट ने बागपत, मेरठ की याची पत्नी को एकमुश्त सात लाख पचास हजार रुपए का विभाग द्वारा भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की एकलपीठ ने श्रीमती माया की याचिका पर दिया है।

कोर्ट ने कहा पेंशन पाने के हक के बावजूद याची के कर्मचारी पति को ग़लत शासनादेश के आधार पर पेंशन देने से इंकार कर दिया गया। वह 4 दिसम्बर 82 के शासनादेश से पेंशन का हकदार था, इसकी उपेक्षा की गई। 1973 के शासनादेश के आधार पर पेंशन पाने का अपात्र घोषित कर दिया गया। जबकि यह शासनादेश उसके मामले में लागू नहीं था।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पेंशन के लिए न्यूनतम योग्यता न होने के आधार पर पेंशन का हकदार न मानने के 5 मार्च 08 के विभाग के आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि पेंशन या नोशनल पेंशन दी जा सकती है किंतु अब मामला पारिवारिक पेंशन का है। इतने अंतराल के बाद जिसकी गणना करना कठिन है, इसलिए याची को विशेष स्थिति के कारण सात लाख पचास हजार एकमुश्त राशि का भुगतान किया जाय।

विभाग में 30 मई 73 के शासनादेश के आधार पर 15 साल की सेवा होनी चाहिए। किन्तु नौ साल आठ माह छह दिन की सेवा मान पेंशन पाने से वंचित कर दिया। जबकि 1982 के शासनादेश से उसको दस साल की सेवा पर पेंशन पाने का हक था और उसने साढ़े 14 साल की सेवा पूरी कर ली थी। गलत शासनादेश के आधार पर अधिकार से वंचित किया गया।

मालूम हो कि याची के पति की नियुक्ति करमालीपुर गढ़ी, बागपत, मेरठ के प्राइमरी स्कूल में सहायक अध्यापक के रूप में बिना पद के 19 नवम्बर 63 को अप्रशिक्षित अध्यापक के रूप में नियुक्ति की गई। 30 जून 91 मे सेवानिवृत्त हो गया। कुल 34 साल की सेवा की। किंतु पेंशन का हकदार नहीं माना गया।

हाईकोर्ट ने बीएसए को प्रकरण तय करने का आदेश दिया था। कहा याची को प्रशिक्षण से छूट नहीं थी। 1973 के शासनादेश के आधार पर पेंशन के लिए 15 साल की सेवा जरूरी है और याची की सेवा नौ साल आठ माह छह दिन ही है। कोर्ट ने 4 दिसम्बर 82 के शासनादेश के आधार पर बीएसए मेरठ को आदेश पारित करने का निर्देश दिया। इस पर 5 मार्च 8 को पुनः पेंशन का हकदार नहीं माना। 85 साल की याची ने पति को पेंशन व उसे पारिवारिक पेंशन का भुगतान करने की मांग में याचिका दायर की। 1982 के शासनादेश से पेंशन के लिए दस साल की सेवा पर्याप्त मानी गई है।

बीएसए ने गलत शासनादेश के आधार पर पेंशन देने से इंकार किया है। कोर्ट ने आदेश तो रद्द कर दिया, किन्तु पारिवारिक पेंशन के तौर पर एकमुश्त रकम देने का निर्देश दिया है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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