
मीरजापुर, 1 जून (Udaipur Kiran) । छानबे क्षेत्र के डंगहर गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन आध्यात्मिक ऊर्जा से वातावरण भावविभोर हो गया, जब कथावाचक डा. दुर्गेश आचार्य ने सुदामा चरित्र का रसपूर्ण वर्णन किया। कथा स्थल पर जैसे ही श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की मधुर झलकियां उभरीं, उपस्थित श्रद्धालु भावनाओं की गहराइयों में डूब गए।
डा. दुर्गेश ने कहा कि जो दीन-दुखियों को अपनाए, वही सच्चा भगवान है। श्रीकृष्ण का नाम ही ‘दीनबंधु’ है। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि वाणी तभी पवित्र है जब वह भगवान के गुणों का गायन करे और वह मन ही निर्मल है जो हर जीव में ईश्वर के दर्शन करे।
कथा के दौरान जब उन्होंने सुदामा और उनकी पत्नी सुशीला के संघर्षपूर्ण जीवन की झलक दी तो जनमानस भावुक हो उठा। सुशीला की चिंता और सुदामा का आत्मसम्मान, इन दृश्यों ने कथा में जान फूंक दी। भिक्षा मांगने वाला ब्राह्मण नहीं रह जाता, सुदामा के इस वाक्य ने श्रोताओं को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित किया। लेकिन मित्रता की पुकार पर सुदामा द्वारिकापुरी चल ही दिए, जहां श्रीकृष्ण ने उन्हें आलिंगन में समेट लिया।
कथावाचक ने स्पष्ट किया कि जो ब्राह्मण, गौ और संत का अपमान करता है, वह मेरा भी अपमान करता है और मेरा अपमान कभी क्षम्य नहीं होता। इस दिव्य वाणी से पंडाल गूंज उठा।
(Udaipur Kiran) / गिरजा शंकर मिश्रा
