लखनऊ, 29 अगस्त (Udaipur Kiran) । देश की न्यायपालिका के द्वारा विगत दिनों अधिवक्ताओं के मनोबल को तोड़ने के तमाम निर्देश आये, जो उचित नहीं हैं। न्याय में देरी की वजह न्यायाधीशों की संख्या कम होना, राजस्व न्यायालयों में अनियमितिकरण, अधिवक्ताओं की बुनियादी सुविधाओं का अभाव और न्यायिक अधिकारियों द्वारा कार्य करने में उदासीनता है। यह बात राज्य विधिज्ञ परिषद उप्र (बार काउंसिल ऑफ़ यूपी) के सदस्य एवं पूर्व अध्यक्ष प्रशान्त सिंह अटल ने कही।
प्रशान्त सिंह अटल ने आगे कहा कि न्याय में देरी के लिए अधिवक्ता समाज को मात्र दोषी ठहराना उचित नहीं है। अधिवक्ता भाई की मृत्यु पर शोक संदेश करना, उनकी अंत्येष्टि में जाना अधिवक्ताओं का मौलिक अधिकार है। इस पर किसी प्रकार की टिप्पणी न्यायपालिका के द्वारा किया जाना उचित नहीं है।
उन्होंने एक पत्र जारी करते हुए कहा कि अधिवक्ता समाज एक स्वतंत्र एवं आदर्श पेशा है, जिसमें आजादी से लेकर आपात काल की लड़ाई तक सदैव न्याय के संरक्षक के रूप में कार्य किया है। जब आपात काल के दौरान इस देश की न्यायपालिका ने लोकतन्त्र की हत्या करने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री के आगे घुटने टेक दिये, उस समय भी अधिवक्ताओं ने जो संघर्ष किया और हजारों की संख्या में अधिवक्ता जेल गये। इसलिये अधिवक्ताओं के स्वतंत्र पेशे पर किसी का दमन स्वीकार नहीं है। हम एक जिम्मेदार कौम के सदस्य है।
बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय और माननीय उच्च न्यायालय से आग्रह है कि त्वरित न्याय के लिये न्यायाधीशों की संख्या बढ़ायी जाये, रिक्त पदों को भरा जाये, अधिवक्ताओं की बुनियादी सुविधाओं के लिये तत्काल प्रयास किये जायें, ताकि न्याय में देरी न हो।
(Udaipur Kiran) / मोहित वर्मा