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हाईकोर्ट ने जिला जज के ’मौखिक निर्देशों’ के तहत वकील की नजरबंदी पर रिपोर्ट मांगी

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

–रजिस्ट्रार (अनुपालन) को जिला जज आगरा से रिपोर्ट प्राप्त कर 28 फरवरी को कोर्ट में सौंपने का निर्देश

प्रयागराज, 20 फरवरी (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को आगरा के 70 वर्षीय अधिवक्ता की कथित हिरासत पर चिंता जताई है। उन्हें जिला एवं सत्र न्यायाधीश के ’मौखिक’ निर्देश पर नवम्बर 2024 में पुलिस कर्मियों ने कथित तौर पर घर में नजरबंद रखा था। याचिकाकर्ता अधिवक्ता महताब सिंह ने कहा कि उन्हें धारा 168 बीएनएसएस (संज्ञेय अपराधों को रोकने के लिए पुलिस) का नोटिस देने के बाद 2 घंटे के लिए उनके घर में हिरासत में रखा गया था, ताकि उन्हें हाईकोर्ट के प्रशासनिक न्यायाधीश से मिलने से रोका जा सके।

याची के मामले में पुलिस अधिकारियों द्वारा उनकी स्वतंत्रता को केवल इसलिए सीमित कर दिया गया क्योंकि जिला न्यायाधीश का मानना था कि याची अधिवक्ता उनके खिलाफ प्रशासनिक न्यायाधीश से शिकायत कर सकता है। इस मामले को असाधारण मामला मानते हुए, जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने आगरा के जिला न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगी है और यह भी स्पष्ट किया कि याची अधिवक्ता को नोटिस देने या उसकी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने के लिए पुलिस को किसने निर्देश जारी किए थे।

न्यायालय ने 1988 की एक अकेली घटना से सम्बंधित तीन आपराधिक मामलों के आधार पर नोटिस जारी करने के राज्य के औचित्य को भी खारिज कर दिया। यह घटना न्यायालय परिसर में हुई थी, जिसमें याचिकाकर्ता सहित 40-50 से अधिक वकील शामिल थे।

हाईकोर्ट ने कहा भले ही याची को इस मामले में फंसाया गया हो, लेकिन इस घटना के लगभग 37 साल बाद धारा 168 बीएनएसएस के तहत नोटिस जारी करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि पुलिस आयुक्त का हलफनामा इस बारे में बिल्कुल चुप है कि उन्हें अधिवक्ता को नोटिस जारी करने या उसकी स्वतंत्रता को कम करने के निर्देश किससे मिले थे। रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री प्रथम दृष्टया धारा 168 बीएनएसएस, 2023 के तहत नोटिस जारी करने को उचित नहीं ठहराती है क्योंकि इसके आधार पर किसी भी संज्ञेय अपराध के होने की आशंका नहीं जताई जा सकती है।

हालांकि राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि पुलिस कर्मियों का याचिकाकर्ता के घर जाना केवल धारा 168 बीएनएसएस के तहत जारी नोटिस की तामील करने के लिए था और याची को घर में नजरबंद नहीं किया गया था। लेकिन कोर्ट ने प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता की शिकायत में तथ्य पाया और कहा कि मामले की गहन जांच की आवश्यकता है।

पुलिस आयुक्त ने पुलिस की कार्रवाई का विवरण देते हुए हाईकोर्ट में एक हलफनामा प्रस्तुत किया। हलफनामे में कहा गया है कि एक अन्य अधिवक्ता द्वारा एक पत्रक प्रसारित किया गया था, जिसमें वकीलों से कई मुद्दों पर प्रशासनिक न्यायाधीश से मिलने का आग्रह किया गया था। पुलिस अधिकारियों को आशंका थी कि याचिकाकर्ता असंवैधानिक गतिविधियों में शामिल हो सकता है, जिसके कारण उन्हें शांति बनाए रखने के लिए धारा 168 बीएनएसएस के तहत नोटिस जारी करना पड़ा।

खंडपीठ ने इस आधार पर नोटिस जारी करने को उचित नहीं पाया, क्योंकि कोर्ट ने कहा कि यदि प्रशासनिक न्यायाधीश के जिले में दौरे के दौरान उनसे जानकारी छिपाने के लिए राज्य द्वारा कोई अनधिकृत हस्तक्षेप किया जाता है, तो इससे न्याय प्रशासन में गंभीर बाधा उत्पन्न हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि सम्बंधित जिला न्यायाधीश के प्रशासनिक न्यायाधीश के दौरे का महत्वपूर्ण उद्देश्य प्राप्त करना होता है। इससे न्यायाधीश के पद का सुचारू संचालन सुनिश्चित होता है। ऐसी परिस्थितियों में वकीलों के विचार महत्वपूर्ण हो जाते हैं। बहुत बार प्रशासनिक न्यायाधीश वकीलों से बातचीत करते हैं, ताकि जिला न्यायाधीश के पद का सुचारू रूप से संचालन सुनिश्चित किया जा सके।

हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को पूरे मामले पर जिला न्यायाधीश, आगरा से एक रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए कहा है। इसके अलावा, न्यायालय ने निर्देश दिया कि संबंधित जिला न्यायाधीश, आगरा की टिप्पणियों को सीलबंद लिफाफे में प्रस्तुत किया जाएगा, जिसे 28 फरवरी को न्यायालय के समक्ष रखा जाएगा।

(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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