
बिलासपुर , 18 मार्च (Udaipur Kiran) ।शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत दायर याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस याचिका में कहा गया है कि प्रदेश के प्रमुख निजी स्कूलों में कुल सीटों का केवल तीन प्रतिशत ही आरटीई के तहत भरा जा रहा है। इसके साथ ही पिछले एक साल में आरटीई के तहत एडमिशन की संख्या में लगभग सवा लाख की गिरावट आई है। इसके बाद कोर्ट ने सरकार और शिक्षा विभाग से पिछले वर्षों में आरटीई की 25 प्रतिशत आरक्षित सीटों पर हुए एडमिशन और रिक्त सीटों की विस्तृत जानकारी मांगी थी। इससे पहले प्रदेश में शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के तहत ईडब्ल्यूएस और बीपीएल वर्ग के बच्चों के सही तरीके से एडमिशन नहीं होने को लेकर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और शिक्षा विभाग से जवाब तलब किया था।
कोर्ट ने हाल ही में लागू नए नियमों से आरटीई सीटों में कटौती, एडमिशन में अनियमितता और फर्जी प्रवेश को लेकर भी स्पष्टीकरण मांगा था। इससे पहले हाईकोर्ट ने मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि आरटीई अधिनियम के तहत स्कूलों में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करना बच्चों का मौलिक अधिकार है। गरीब माता -पिता भी अपने बच्चों को बच्चे को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने की इच्छा रखते हैं तो वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में नामांकन करा सकते हैं। याचिका में कहा गया है प्राइवेट स्कूलों में पहली कक्षा के नामांकन में 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब छात्रों को मुफ्त में नामांकन लेना है, एवं निशुल्क पढ़ाई कराना है। लेकिन गरीब बच्चों के नामांकन में प्राइवेट स्कूल के संचालकों की मनमानी जारी है। घर से 100 मीटर के दायरे में एडमिशन के नियम के आधार पर कई बच्चों को प्रवेश वंचित किया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि बड़े निजी स्कूल आरटीई के तहत आने वाले आवेदनों को जानबूझकर खारिज कर रहे हैं। इसके बाद इन सीटों को डोनेशन और फीस लेकर भरा जा रहा है।
दरअसल भिलाई के वरिष्ठ समाज सेवी सीवी भगवंत राव ने इस मामले में जनहित याचिका दायर की है। अधिवक्ता देवर्षि सिंह के माध्यम से दायर इस याचिका में पूर्व में चार दर्जन निजी स्कूलों को पक्षकार बनाया गया था। पहले हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने इन स्कूलों को नोटिस जारी किया था।
याचिकाकर्ता के मुताबिक आरटीई के तहत शिक्षा के अधिकार की यह कानूनी लड़ाई 2012 से जारी है। 2016 में हाई कोर्ट ने विस्तृत दिशा-निर्देश भी जारी किए थे। मगर, निजी स्कूलों ने इन्हें सही ढंग से लागू नहीं किया। इस लापरवाही और अनियमितता को देखते हुए फिर से याचिका दायर की गई है। हाई कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार और शिक्षा विभाग से विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि 6 से 14 आयु समूह के बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा बच्चों का अधिकार है। बच्चे को आर्थिक एवं सामाजिक आधार पर पढ़ाई से रोका नहीं जा सकता है।
(Udaipur Kiran) / Upendra Tripathi
