

उदयपुर, 29 मई (Udaipur Kiran) । राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने कहा कि भारतीय संसदीय लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हैं। मर्यादाओं में निसंदेह कुछ गिरावट आई है, लेकिन हमारे संस्कार और संस्कृति इतनी समृद्ध है कि संसदीय लोकतंत्र की गरिमा और भविष्य दोनों सुरक्षित हैं।
राज्यपाल बागड़े गुरुवार को वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के तत्वावधान में उदयपुर में आयोजित विधानसभा कल, आज और कल विषयक मेवाड़ से संबद्ध विधानसभा पूर्व अध्यक्षों की समागम कार्यशाला को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। कार्यशाला की अध्यक्षता विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने की। पूर्व अध्यक्ष कैलाश मेघवाल, शांतिलाल चपलोत और डॉ. सीपी जोशी बतौर विशिष्ट अतिथि मंचासीन रहे।
राज्यपाल बागड़े ने कहा कि पहले सदन में विषय पर अधिक चर्चा होती थी, अब विषयान्तर अधिक होने लगा है। विधेयक पर बहस में जनप्रतिनिधि रुचि से भाग नहीं लेते, जबकि उस पर तथ्यात्मक बहस होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सदन में अलग-अलग विचारधारा के लोग होते हैं, इसके बावजूद पहले उनमें आपस में एक दूसरे के प्रति सम्मान होता था, लेकिन अब कटुता अधिक रहती है। उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष पद के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि राजनीतिक विचारधारा भले ही अलग हो, लेकिन सभी जनप्रतिनिधियों का ध्येय जन कल्याण पर केंद्रित होना चाहिए।
बागड़े ने कहा कि राजस्थान में विधानसभा संचालन उत्कृष्ट रूप से हो रहा है। इसका मूल कारण यही है कि यहां के लोग संस्कारित और सभ्य हैं। राजस्थान की जनता का देव धर्म पर अटूट विश्वास है। इसलिए संयमित और निष्ठावान हैं। जनप्रतिनिधि इसी समाज का हिस्सा है, इसलिए सदन अच्छी तरह से संचालित हो पाता है और भविष्य में भी होता रहेगा।
कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि राजस्थान विधानसभा आज देश के सभी राज्यों के सदनों में सर्वश्रेष्ठ है। विधानसभा की कार्यवाही को यूट्यूब चैनल के माध्यम से प्रदेश की 8 करोड़ जनता सीधे देख सकती है। इससे सदस्यों के आचरण व व्यवहार में सुधार आएगा तथा पारदर्शिता भी कायम हो रही है। राजस्थान विधानसभा पेपरलैस हो रही है। सभी विधायकों को आईपैड दिए गए हैं तथा पहली बार में ही 70 प्रतिशत से अधिक विधायकों ने इसका उपयोग करते हुए पेपरलैस वर्क को अपनाया। आगे वाले सत्रों में इसे शत प्रतिशत किया जाएगा।
देवनानी ने कहा कि हम राजतंत्र से प्रजातंत्र की ओर आए हैं। सभी सरकारों ने अपने-अपने हिसाब से जन कल्याण को लक्ष्य बनाकर काम किया है। सदन में पूर्व में पक्ष-विपक्ष एक दूसरे का सम्मान करते थे, लेकिन इसमें कहीं न कहीं कमी आई है। इसका प्रभाव सदन के कामकाज के साथ ही जन अपेक्षाओं की पूर्ति में भी दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि विधायक गणों में अध्ययन की प्रवृत्ति भी कम हो गई है। अब सिर्फ अपने-अपने पक्ष की सराहना तक सीमित हैं। सदन में हंगामे राजनीतिक ध्रुवीकरण और प्रचार के उद्देश्य से होने लगे हैं। मीडिया भी नकारात्मक बात तो अधिक महत्व देने लगा है, जबकि सकारात्मक प्रयासों को हाईलाइट करने की आवश्यकता है। देवनानी ने विधायकों के प्रशिक्षण पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि विधायकों को सदन में किस तरह का आचरण करना चाहिए उसके लिए जीतने के बाद सुव्यवस्थित प्रशिक्षण पार्टी स्तर पर होना चाहिए। हालांकि प्रशिक्षण होते हैं, लेकिन उसमें सदन की गरिमा और मर्यादा के बारे में चर्चा नहीं के बराबर होती है।
देवनानी ने कहा कि सदन का अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने के लिए पीठासीन अधिकारी को सख्त होना पड़ता है, लेकिन इसका अभिप्राय यह नहीं कि आसन पर ही सवाल उठाए जाने लगें। उन्होंने पीठासीन अधिकारी की तुलना मां से करते हुए कहा कि जिस प्रकार मां बच्चे की हरकतों से परेशान होकर उसे घर से चले जाने के लिए कह देती हैं, लेकिन उसके वापस नहीं लौटने तक उसके गले से निवाला नहीं उतरता है, ऐसा ही आसन के साथ भी है। सदन के सभी सदस्य उसका परिवार हैं। इसलिए सदस्य को वापस बुलाया जाता है, उसके लिए पक्ष-विपक्ष दोनों से चर्चा की जाती है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने कहा कि समय के साथ सभी चीजों में बदलाव हुआ है। सकारात्मक बदलावों का स्वागत है, लेकिन विधेयक पर स्वस्थ चर्चा में कमी आना ठीक नहीं है। अध्ययनवेत्ता लोगों की कमी है। विधानसभा की लाईब्रेरी का उपयोग कम हुआ है। इससे सदस्यगण किसी महत्वपूर्ण विषय पर बात तक नहीं कर पाते और कानून निर्माण भी रस्म अदायगी जैसा हो गया है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष शांतिलाल चपलोत ने कहा कि भारत में लोकतंत्र की अवधारणा प्राचीनकाल से चली आ रही है। भगवान श्रीराम का दौर इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। भगवान ऋषभदेव, महावीर स्वामी के दौर में भी यही व्यवस्था थी। वर्तमान संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में विधायिका महत्वपूर्ण घटक है। यह विधान निर्माण के साथ ही कार्यपालिका के कामकाज को भी नियंत्रित करती है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना से बात प्रारंभ करते हुए कहा कि संसदीय लोकतंत्र की मूल भावना प्रस्तावना में निहित है। संविधान लागू होने के बाद से लेकर सभी सरकारों ने सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक न्याय, पंथ निरपेक्षता, समाजवाद जैसे मूल सिद्धान्तों को केंद्र में रखकर कार्य किए।
कार्यक्रम में उदयपुर शहर विधायक ताराचंद जैन, उदयपुर ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा, वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के कुलगुरु डॉ. कैलाश सोडाणी सहित कई प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
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(Udaipur Kiran) / सुनीता
