— राणा सांगा के ख़िलाफ़ किया था अमर्यादित टिप्पणी
वाराणसी, 18 अप्रैल (Udaipur Kiran) । संसद में और बाहर महाराणा सांगा को गद्दार कहते हुए उन पर अमर्यादित टिप्पणी करने के मामले में समाजवादी पार्टी के नेता व राज्य सभा सांसद रामजी लाल सुमन को न्यायालय से बड़ी राहत मिली है। वाराणसी में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (चतुर्थ)/एमपी-एमएलए कोर्ट नीरज कुमार त्रिपाठी की अदालत ने इस मामले में दाखिल परिवाद को सुनवाई के बाद पोषणीय नहीं मानते हुए खारिज कर दिया। अदालत में राज्य सभा सांसद की ओर से उनके अधिवक्ता अनुज यादव कोर्ट में उपस्थित रहे।
दरअसल, राणा सांगा पर अमर्यादित टिप्पणी के बाद राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के वाराणसी इकाई के जिलाध्यक्ष एवं पार्वती नगर कॉलोनी निवासी आलोक कुमार सिंह ने अदालत में परिवाद दाखिल किया था। उनका परिवाद के जरिए आरोप था कि समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद एवं राष्ट्रीय महासचिव ने 21 मार्च 2025 को दोपहर 2.10 बजे सदन में राणा सांगा को गद्दार और क्षत्रिय कौम को गद्दार की औलाद बताया गया। जो तमाम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं प्रिंट मीडिया से प्रसारित हुआ, जिससे परिवादी एवं संपूर्ण क्षत्रिय समाज गंभीर रूप से आहत हुआ। विपक्षी के इस अशोभनीय स्पीच को सभापति ने डिलीट करने का आदेश पारित किया। बावजूद इसके राज्य सभा सांसद रामजी लाल सुमन ने सदन के बाहर भी आकर विवादित स्पीच को विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक्स एवं प्रिंट मीडिया में दोहराया।
सपा सांसद ने यहां तक कह दिया कि बाबर को भारत में लाने वाले राणा सांगा है और राणा सांगा को गद्दार और समस्त क्षत्रिय समाज को गद्दार की औलाद कहा गया। इससे क्षत्रिय समाज को राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के अमर्यादित बयान से काफी ठेस पहुंचा है । क्षत्रिय समाज अपने को काफी अपमानित महसूस कर रहा है। ऐसे में अदालत से राज्यसभा सांसद को तलब कर दंडित किए जाने की मांग की गई थी। अदालत ने इस मामले में सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि न्यायालय की राय में विपक्षी द्वारा राज्य सभा में दिए गए वक्तव्य के संबंध में उसे अनुच्छेद 105 (2) भारतीय संविधान का संरक्षण प्राप्त होने के कारण प्रस्तुत परिवाद दर्ज किए जाने योग्य नहीं है।
अदालत ने कहा कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत तीन वीडियो क्लिप विपक्षी द्वारा न्यूज चैनलों में दिए गए साक्षात्कार की रिकॉर्डिंग है, जिनमें ऐसी कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है, जिसके आधार पर विपक्षी के विरुद्ध धारा 197, 299, 302, 356(2), 356(3) बीएनएस के अपराध कारित करने का कोई मामला नहीं बनता है। ऐसे में अदालत उक्त परिवाद को पोषणीय न होने के कारण ग्राह्यता के स्तर पर ही निरस्त करती है।
(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी
