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न्यायिक रिक्तियों संबंधी जनहित याचिका की सुनवाई से फिर हटे जज, चौथी बार बदलेगी बेंच

इलाहाबाद हाईकाेर्ट्

कॉलेजियम का सदस्य होने पर सुनवाई से खुद को जस्टिस त्रिपाठी ने किया अलग अब ग्रीष्मावकाश के बाद जुलाई में नई खंडपीठ के समक्ष होगी सुनवाई

प्रयागराज, 21 मई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायिक रिक्तियों को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई से बुधवार को न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने स्वयं को अलग कर लिया। यह चौथी बार है जब इस जनहित याचिका की सुनवाई न्यायाधीशों द्वारा स्वयं को अलग करने के कारण स्थगित हुई है।अब ग्रीष्मावकाश के बाद जुलाई में नई खंडपीठ के समक्ष इस मामले पर सुनवाई की जाएगी।

सबसे पहले स्वयं मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले की सुनवाई से इनकार किया था। इसके बाद याचिका न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की पीठ को सौंपी गई, लेकिन एक तकनीकी त्रुटि के कारण यह न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता के समक्ष सूचीबद्ध हो गई। इसके बाद इसे पुनः न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।

न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति अनिल कुमार की खंडपीठ ने याची वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं और माना कि याचिका दाखिल होने के बाद से अब तक कुछ न्यायाधीशों की नियुक्ति हो चुकी है। यह भी रेखांकित किया कि न्यायालय ने स्वयं इस विषय पर न्यायिक संज्ञान भी लिया है। साथ ही न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने स्पष्ट किया कि अब वह हाईकोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा बन चुके हैं, इसलिए इस याचिका पर सुनवाई करना उचित नहीं होगा। इसी आधार पर उन्होंने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

गौरतलब है कि 15 मई को न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र के सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति त्रिपाठी, मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली व न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता के साथ हाईकोर्ट कॉलेजियम में शामिल हो गए हैं। इससे पहले जब न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी कॉलेजियम के सदस्य नहीं थे और वरिष्ठता क्रम में चौथे स्थान पर थे। तब मुख्य न्यायाधीश ने इस याचिका को उनकी अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया था। पिछली सुनवाई में न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने इस विषय पर चिंता व्यक्त हुए राज्य सरकार तथा हाईकोर्ट प्रशासन से स्पष्ट निर्देश प्राप्त करने को कहा था। उन्होंने इस मामले को 21 मई के लिए फ्रेश टॉप 10 मामलों में सूचीबद्ध करने का निर्देश भी दिया था।

जनवरी 2025 में दाखिल इस याचिका में मांग की गई है कि हाईकोर्ट में रिक्त न्यायिक पदों को समयबद्ध और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत भरा जाए। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 160 तक पहुंचे, ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और कार्यक्षमता सुनिश्चित हो सके। याचिका दाखिल किए जाने के समय इलाहाबाद हाईकोर्ट केवल 79 न्यायाधीश कार्य कर रहे थे, जो कुल स्वीकृत संख्या का मात्र 49 प्रतिशत थे। हाल ही में कुछ नियुक्तियों के बाद यह संख्या 87 तक पहुंची है। लेकिन अब भी हाईकोर्ट केवल 55 प्रतिशत क्षमता पर कार्य कर रहा है। जबकि 11.5 लाख से अधिक मामले लंबित हैं।

बार-बार इस याचिका का टॉप-10 सूची में आना और न्यायालय की ओर से लगातार की जा रही न्यायिक टिप्पणियां यह दर्शाती हैं कि यह मुद्दा न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि भारत की समग्र न्यायिक व्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी उच्च न्यायालयों में रिक्तियों को लेकर चिंता जताई गई है, जिससे इलाहाबाद का यह मामला अब राष्ट्रीय महत्व का रूप ले चुका है।

अब यह याचिका जुलाई- 2025 में ग्रीष्मावकाश के बाद मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित नई पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए प्रस्तुत की जाएगी। यह याचिका केवल रिक्त पदों को भरने की मांग नहीं करती, बल्कि न्यायपालिका की संवैधानिक प्रभावशीलता को बहाल करने की पुकार है। जो आने वाले समय में न्यायिक सुधार और समयबद्ध न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध हो सकती है।

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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

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