प्रयागराज, 03 सितम्बर (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने शादी के झूठे वादा कर बलात्कार और अन्य आरोपों के आरोपी एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने निर्णय में इस बात पर जोर दिया गया है कि शादी के वादे को शोषण के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, जो व्यक्तियों का शोषण करने के लिए ऐसे वादों के दुरुपयोग के खिलाफ अदालत के रुख को मजबूत करता है।
यह मामला गौतमबुद्ध नगर का है। जनवरी 2019 में एक महिला द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने कई साल पहले फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उससे दोस्ती की और बाद में उसे शादी का प्रस्ताव दिया। जिस पर उसने सहमति जताई। शिकायत के अनुसार, आरोपित ने शादी के बहाने उसके साथ शारीरिक सम्बंध बनाए।
महिला ने दावा किया कि वह रिश्ते के दौरान दो बार गर्भवती हुई और दोनों मौकों पर आरोपित ने उसे गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया। आरोपों में कहा गया है कि जब शिकायतकर्ता को पता चला कि आरोपित दूसरी महिलाओं के साथ सम्बंध बना रहा है और उसने उससे इस बारे में बात की, तो उसने उसे गम्भीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। इन घटनाओं के बाद, उसने थाना फेज तीन, गौतमबुद्ध नगर में शिकायत दर्ज कराई। जिसके कारण भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323, 504, 506, 313 और 376 के तहत आपराधिक कार्यवाही शुरू हुई।
इस मामले में मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या शादी का वादा, जिसे पूरा नहीं किया गया, शारीरिक सम्बंध बनाने के लिए झूठा बहाना माना जा सकता है। जिससे आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत अपराध बनता है।
आरोपित रवि कुमार भारती उर्फ बिट्टू ने हाईकोर्ट में धारा 482 सीआरपीसी की अर्जी दाखिल कर जून 2020 में गौतमबुद्ध नगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट को रद्द करने और आगे की कार्यवाही को रोकने की मांग की थी।
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि सम्बंध सहमति से बने थे और धारा 376 आईपीसी के तहत कोई अपराध स्थापित नहीं किया जा सकता। उन्होंने पिछले निर्णयों का हवाला दिया जहां अदालतों ने फैसला सुनाया है कि सहमति से बने सम्बंध बलात्कार नहीं बनते, भले ही शादी का वादा बाद में टूट जाए।
इसके विपरीत, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि अभियुक्त ने शिकायतकर्ता महिला का बार-बार शोषण करने के लिए शादी के वादे का इस्तेमाल एक उपकरण के रूप में किया था, जो धारा 376 आईपीसी के तहत एक गलत प्रलोभन था। न्यायमूर्ति चौहान ने पक्षों की बहस एवं रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों की समीक्षा करने के बाद, आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विवाह का वादा स्पष्ट रूप से झूठा था, जैसा कि अभियुक्त द्वारा अन्य महिलाओं के साथ एक साथ सम्बंध बनाने और उसके कार्यों से शिकायतकर्ता के गर्भधारण और उसके बाद गर्भपात होने से प्रदर्शित होता है।
अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आरोपों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त प्रथम दृष्टया साक्ष्य मौजूद है, जो शिकायतकर्ता को धोखा देने और उसका शोषण करने के स्पष्ट इरादे की ओर इशारा करते थे। नतीजतन, अदालत ने आरोपित के खिलाफ जारी कार्यवाही और गैर-जमानती वारंट को रद्द करने से इनकार कर दिया।
—————
(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे