जयपुर, 8 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । काँतिचंद्र रोड स्थित जंगलेश्वर महादेव मंदिर के पास श्रीमद् भागवत कथा स्थल पर चल रहे यज्ञ एवं भागवत कथा कार्यक्रम की कड़ी में मंगलवार को धर्म ध्वजा वाहक पंकज ओझा (आरएएस) ने सनातन धर्म और संस्कृति पर उद्बोधन दिया।
यत्र संचालक संतोष सागर महाराज ने बताया कि सनातन धर्म का महत्व बताते हुए पंकज ओझा ने कहा कि सनातन वह है जिसका न कोई आदि है, न ही अंत। सनातन शाश्वत है, अनादि है, अनंत है। सनातन का प्रसार सर्वत्र है, इसका कोई ओर-छोर नहीं है। यह समस्त
ब्रह्माण्ड को स्वयं में समेटे हुए है।
ओझा ने बताया कि भारतवर्ष ही सनातन का प्रमुख एवं प्राचीनतम केंद्र है। सनातन धर्म के ग्रंथ भारत में ही लिखे गए हैं, जिनका समस्त विश्व शोध कर रहा है। सनातन ग्रंथों के ज्ञान से ही विज्ञान ने तरक्की की है। हमारे मठ, मंदिर, मूर्तियाँ, हमारे शिल्प, प्रकल्प हमारी संस्कृति के सूत्र सभी
हजारों वर्ष पुराने हैं।
उन्होंने कहा कि वेदव्यास रचित भागवत के तीसरे स्कंध के 11वें अध्याय में सृष्टि रचना खण्ड में परमाणु की एकदम सत्य और सटीक परिभाषा का वर्णन मिलता है, तो बारहवें स्कंध में पृथ्वी पर सप्तद्वीप को वर्णन मिलता है जो कालांतर में सब सही सिद्ध हुआ।
आर्यभट्ट ने छठी शताब्दी में पृथ्वी के गोल होने का वर्णन किया साथ ही वे कहते थे कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।पश्चिमी जगत 16वीं शताब्दी तक भी यह मानने को तैयार नहीं था। ऐसा कहने पर कॉपरनिकस को जीवित जला दिया गया।
रामचरितमानस में सुग्रीव ने जब वानरों को माता सीता को पृथ्वी पर ढूँढने हेतु आदेशित किया और सारी पृथ्वी का भूगोल समझाया तब श्री राम ने पूछा कि तुम्हें यह सब कैसे पता? इस बात से भी यह प्रमाणित होता है कि हम तब भी सब कुछ जानते थे। हमारे यहाँ ‘भूगोल’ ही कहा
जाता था क्योंकि हमें पता था कि पृथ्वी गोल है। उन्होंने कहा कि हमारे समस्त अवतार भारत में ही हुए। श्रीराम और श्रीकृष्ण ऐसे राजा हुए जिन्होंने अपने आशीर्वचनों, कार्यों, आदर्शों
और चरित्र से संपूर्ण सृष्टि को प्रभावित किया। इसी पावन भारत भूमि पर भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध हुए जिन्होंने संपूर्ण पृथ्वी पर अपने ज्ञान का प्रसार किया। भारत में ही 41075 वर्ष प्राचीन विष्णु मूर्ति है तो भारत में ही 27000 वर्ष प्राचीन विष्णु कल्प विग्रह है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण के दिए उपदेशों से आज भी सम्पूर्ण मानव जाति जीने की कला सीखती है। दूसरी ओर श्रीराम के मर्यादापूर्ण जीवन से हम अपने घर- परिवार समाज के लिए कैसे जिएं, यह आदर्श सीखते हैं। सनातन की रक्षा के लिए अपने जीवन को दांव पर लगा कर भी धर्म की रक्षा का आदर्श हम अपने जीवन में उतारते हैं।पूरा मैदान पंकज ओझा की ओजपूर्ण वाणी से गूँज रहा था और श्रोतागण एकटक बड़े मनोयोग से धैर्यपूर्वक उनको सुन रहे थे। इतना धैर्य एवं शान्ति सनातन में हि संभव है।
—————
(Udaipur Kiran)