— पर्यावरण और प्रदूषण के साथ सुंदरता के लिहाज से सर्वोत्तम
कानपुर, 28 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने गोरखपुर को जब से ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) के तहत टेराकोटा के लिए चुना तो लोगों ने इसमें रोजगार के अवसर खोज लिये। अब दीपावली का त्योहार नजदीक आ रहा है तो टेराकोटा के उत्पाद बाजार में धड़ाधड़ बिक रहे हैं और यह पूरी तरह से प्राकृतिक हैं। प्राकृतिक के साथ इनके उत्पादों में सुंदरता लोगों को आकर्षण कर रही है। कानपुर के कुछ लोग जो मूर्तियां आदि बनाने का काम करते हैं तो उन लोगों ने एक माह पहले ही गोरखपुर से लाल मिट्टी जो टेराकोटा कला में काम आती है उसको मंगवा लिया था।
गोरखपुर की लाल मिट्टी से बने उत्पादों की मांग भी धीरे–धीरे छोटे और बड़े घरों में सामान्य से अधिक होने लगी है। अब तो नगर के कुछ कारीगर वहां से मिट्टी लाकर यहां पर उत्पादों का निर्माण करने का सफल प्रयास कर रहें हैं। यह दीपावली नई कलाकृतियों के साथ और भी आकर्षक बन गया है। टेराकोटा की ये अद्भुत हस्तशिल्प छोटे बड़े घरों की सजावट में चार चांद लगाने का काम कर रहे हैं। घरों को सजाने के लिए टेराकोटा के लालटेन, हाथी मेज, पौधे रोपने के बर्तन की भी खूब मांग बढ़ी है। मनी प्लांट रोपने के लिए बर्तन की मांग भी छा गयी है। कई व्यापारी टेराकोटा की कलाकृतियां लेकर उसमें झालर आदि लगाकर उसकी खूबसूरती और बढ़ा देते हैं, जिसे खूब पसंद किया जा रहा है। इसकी मिट्टी की सुगंध और कलाकारों की मेहनत हर एक कलाकृति में झलकती है। इस मिट्टी से कलाकृतियां तैयार करने वाले साधारण दीयों की जगह विशेष प्रकार के दीयों पर अधिक ध्यान देते हैं। जिसमें स्टैंड दीया, कलश दीया की मांग बाहर के व्यापारियों में जबरदस्त है। ये अलग बात है कि साधारण मिट्टी से बने दीए और कलाकृतियों पर उतनी अधिक फिनिशिंग नहीं आ पाती है जबकि टेराकोटा से निर्मित वस्तुओं में फिनिशिंग उसकी खूबसूरती निखार देती है। टेराकोटा को लेकर चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ. एस एन सुनील पाण्डेय का कहना है कि टेराकोटा एक असाधारण पर्यावरण-अनुकूल सामग्री है, क्योंकि यह पुनर्चक्रणीय है और लंबे समय तक चलने वाली है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह शत प्रतिशत प्राकृतिक है।
यहां पर तैयार होते हैं उत्पाद
शहर के कल्याणपुर, गोल चौराहा, साकेत नगर, गोविन्द नगर, श्याम नगर आदि क्षेत्रों में सड़क किनारे ही लगभग सैकड़ाें शिल्पकार इन दिनों दिन-रात कलाकृतियां तैयार करने में जुटे हैं। हालांकि, इसके उत्पाद साधारण मिट्टी से बने उत्पादों की अपेक्षा थोड़े महंगे अवश्य होते हैं, लेकिन उतनी ही मजबूती भी होती है। जिसके चलते लोगों की पहली पसन्द होते हैं। ओडीओपी नियमों के तहत सरकार की ओर से दिए गए सांचे के बाद खाली समय में कुछ साधारण व एकल डिजाइन दीये तैयार किए जा रहे हैं लेकिन अधिकतर शिल्पकारों का फोकस हाथ से काम करने में होता है। इनके दीये ऐसे होते हैं कि रखने के लिए जगह की तलाश नहीं करनी होगी। दीप प्रज्जवलन के दौरान जो स्टैंड लगाया जाता है, उसी तरह के स्टैंड दो दर्जन दीयों के साथ यहां के शिल्पकार तैयार कर लेते हैं।
टेराकोटा के उत्पादों की बढ़ी मांग
गोल चौराहे पर टेराकोटा से बने उत्पादों की दुकान चलाने वाले दिनेश प्रजापति ने सोमवार को बताया कि अब इसके उत्पादों की मांग घरों में अधिकता से हो रही है। उत्पादों में अच्छी फिनिशिंग के चलते इन्हे रंग से सजाना नहीं पड़ता। दूसरे शिल्पकार विनीत मंडल के मुताबिक अब तो गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों के आर्डर आने लगे हैं। यहां गणेश व लक्ष्मी की लगभग एक फीट लम्बी मूर्ति भी बनाई जाती है। मूर्तियां देखने में इतनी आकर्षक होती हैं मानो बोल पड़ेंगी। 200 से 500 रुपये कीमत वाली छोटी मूर्तियां कुछ शिल्पकार ही बनाते हैं और उनकी मांग स्थानीय स्तर पर ही होती है। अधिकतर लोग मूर्तियों के साथ दीये भी जोड़ते हैं जिससे वह और भी सुन्दंर दिखायी देती हैं।
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(Udaipur Kiran) / अजय सिंह