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शिक्षक को समय-समय पर शिक्षा प्रदान करते हुए आत्म मंथन करना चाहिए : प्रति कुलपति

शिमला, 5 सितंबर (Udaipur Kiran) । हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति आचार्य राजिन्द्र वर्मा ने शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य पर वीरवार काे विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों एवं छात्रों को अपनी शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि भारत पुनः विश्व गुरू के स्थान पर स्थापित हो, इसके लिए हमें प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षक राष्ट्र निर्माता होता है और समय-समय पर शिक्षक को आत्म मंथन भी करते रहना चाहिए।

इस अवसर पर उन्होंने छात्रों से अपील की है कि वे अपने गुरूजनों का सम्मान करते हुए मेहनत और लगन के साथ अपनी पढ़ाई करें ताकि वे अपने उद्देष्य को प्राप्त कर सकें। प्रति-कुलपति ने कहा कि अनुशासन में रहकर ही जीवन का उद्देष्य प्राप्त किया जा सकता है जिससे कि विष्वविद्यालय का नाम भी रोशन होगा। प्रति-कुलपति ने सर्वपल्ली डाॅ.राधाकृष्णन के विचारों पर भी प्रकाश डाला।

प्रति-कुलपति ने विश्वविद्यालय के प्राध्यापकवर्ग से आग्रह किया कि वे विद्यार्थियों को पढ़ाई तथा शोध कार्य के साथ अन्य सामाजिक गतिविधियों की पूर्ति हेतु नैतिक मूल्यों पर आधारित कार्य करने के लिए भी प्रोत्साहित करें और विद्यार्थियों के साथ सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार बनाए रखें ताकि विष्वविद्यालय का शैक्षणिक माहौल व वातावरण बना रहे।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के सेवानिवृत प्राध्यापक एवं सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के पूर्व कुलपति एवं पदम्श्री आचार्य अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने संस्कृत भाषा की वर्तमान स्थिति पर चिन्ता व्यक्त करते हुए बताया कि विष्व को दिषा देने वाली संस्कृत भाषा आज जिस प्रकार अधोगति की स्थिति में है उस पर तुरन्त चिन्तन करने की आवष्यकता है।

उन्होंने कहा कि भारतवर्ष यदि आज विश्व गुरू बनने की ओर अग्रसर है तो उसमें मुख्य भूमिका संस्कृत भाषा की है और हमारे देष को इस स्थान पर लाने के लिए उन हज़ारों ऋषि-मुनियों और संतों ने अथक प्रयास किया है जिन्होंने यहां पर वेदों, पुराणों और उपनिषदों के माध्यम से ज्ञान को बढ़ाया और अध्ययन तथा अध्यापन में संस्कृत भाषा के माध्यम से भारतवर्ष को विष्व में सर्वोपरी बनाया।

इस अवसर पर अपने सम्बोधन में मनोवैज्ञानिक, आचार्य एस.एन.घोष ने मानवीय सभ्यता में भारतीय ज्ञान भण्डार की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार मधुमक्खीयां अपने ताने-बाने से आपसी भाईचारे और जीवनयापन करने का संदेश देती हैं उसी प्रकार मनुष्य भी षिक्षा के माध्यम से उसके गुरूओं द्वारा दिए गए ज्ञान के द्वारा समाज को अपने कार्यों से और गतिविधियों से प्रभावित करता है।

अपने सम्बोधन में अधिष्ठाता अध्ययन आचार्य बी.के. शिवराम ने कहा कि हम बहुत ही भाग्यशाली हैं जो हमें शिक्षक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि गुरू-षिष्य परम्परा को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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(Udaipur Kiran) शुक्ला

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