Uttar Pradesh

प्रतीक रूप से वृक्षों ने एकजुट होकर चीत्कार मार्च निकाला

चित्कार  मार्च

_वृक्षों ने कहा “जंगल में न सही, तो माेहल्ले में तो हमें रहने दो “छाया और फल देंगे, ऑक्सीजन तो हर वक्त

वाराणसी, 05 जून (हि,स,) । विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर गुरुवार को सामाजिक संस्था विशाल भारत संस्थान ने वृक्षों को मानवीय भावनाओं के साथ उनके दर्द को उजागर करने के लिए प्रतीक रूप से वृक्ष चीत्कार मार्च निकाला। संदेश दिया कि जहां सभी अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, वहीं वर्षों से वृक्ष भी अत्याचार सह रहे हैं, जबकि इनका जीवन मानव सभ्यता के लिए है। बावजूद इसके इंसान इन वृक्षों को खत्म करने पर तुला हुआ है। जब इनकी नहीं सुनी गई, तब थक-हारकर वृक्षों ने अपना यूनियन बना लिया। अपने दर्द को दुनिया तक पहुंचाने के लिए वृक्ष यूनियन के सदस्य ने चीत्कार मार्च निकालकर अपना दर्द बताया और इंसानों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया। प्रतीक रूप से वृक्षों के नवनिर्वाचित अध्यक्ष पीपल पाण्डेय ने कहा कि “हम धरती पर आये ही हैं दूसरों के जीवन को बचाने के लिए। ऑक्सीजन न दें तो इंसान सांस न ले पाए। एक इंसान को जीवन भर में करोड़ों रूपये का ऑक्सीजन देते हैं, फिर भी हमें काट दिया जा रहा है। इन्हीं इंसानों के पूर्वज हमारी पूजा करते थे, जब तक हम पूजे गए, तब तक ऑक्सीजन के लिए पैसा नहीं देना पड़ा। बंद करो आरी का वार, नहीं सहेंगे अत्याचार। कटहल गुप्ता, बरगद सिंह, जामुन चौबे ने कह दिया कि अब जंगल खत्म कर रहे हो तो गांवों और माेहल्लों में तो रहने दो।

इस अवसर पर विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजीव ने कहा कि वृक्ष यूनियन के माध्यम से वृक्षों के दर्द को उजागर किया जाएगा। ये पेड़ -पौधे हमारे परिवार और जीवन का हिस्सा हैं। इनको अलग करना मतलब अपनी जिंदगी से खिलवाड़ करना है। पौधा न लगाओ लेकिन काटो तो मत। पूर्वजों के रास्तों पर चलकर हम पृथ्वी और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं। संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अर्चना भारतवंशी ने कहा कि वृक्ष अपने होने का एहसास करा रहे हैं। वृक्ष से मानव जीवन बचा है। इनको भी अपने परिवार का हिस्सा बनायें।

मार्च में डॉ. नजमा परवीन, ज्ञान प्रकाश, सत्यम राय, संजय भारद्वाज, अमित राजभर, सत्यम सिंह, अंकित राय, रीता, माया, पार्वती, धनेसरा, ममता, सरोज, अंजू, विद्या, इली भारतवंशी आदि भी शामिल रहे।

(Udaipur Kiran) / श्रीधर त्रिपाठी

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