धमतरी , 10 सितंबर (Udaipur Kiran) । 16 वर्ष की आयु में गांव छोड़कर आश्रमों में भटकने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर योग प्रशिक्षक के रूप में विख्यात हीरालाल कश्यप अब स्वामी विश्वज्योति सरस्वती के नाम से पहचाने जाते हैं। वे पूरे 51 वर्षों के पश्चात अपने गांव मोदे लौटे तो बुजुर्गों से आशीष लेने लगे। उनकी ख्याति सुन आसपास के गांवों के लोग भी उनका सानिध्य पाने मोदे गांव आए।
योग को बढ़ावा देने और आश्रम में सेवा का जुनून नगरी के ग्राम मोदे निवासी हीरालाल कश्यप में इस कदर हावी हुआ कि उन्होंने घर छोड़कर आश्रम में शरण ले ली। फिर घर की ओर कभी मुड़कर नहीं देखा, बल्कि गंगा नदी किनारे के आश्रमों में जीवन बिताते हुए योग की शिक्षा देने लगे। केवल 16 वर्ष की आयु में घर छोड़ने वाले हीरालाल की पहचान अब योग गुरु के रुप में है। उन्हें स्वामी विश्वज्योति सरस्वती के नाम से जाना जाता है। वे 51 वर्षों के बाद अब गांव पहुंचे तो ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया।
बताया गया है कि स्वामी विश्वज्योति सरस्वती मोदे निवासी बाबूलाल कश्यप के द्वितीय पुत्र हैं। वे पांच भाई हैं। 51 वर्ष पहले योग आश्रम बिहार में सेवा देने चले गए थे। उन्होंने योग गुरु के रुप में बिहार स्कूल आफ योगा मुंगेर में अपना सेवा दी। पश्चात बैजनाथ धाम देवधर मंगोत्री में दो वर्ष, गुजरात के नदियार में पांच वर्ष उज्जैन में चार माह सेवा दी। उनके बाद ऋषिकेष आश्रम, कैलाश आश्रम, योगी निकेतन में सेवा प्रदान की। गांव आने पर मोदे के अलावा सांकरा व घठुला में भी ग्रामीणों ने उनका स्वागत किया। उनके परिवार में पांच भाई में से दो भाई गोविंद कश्यप व सुरेश कश्यप उनकी सेवा कर रहे है। स्वागत करने वालों में डाक्टर रुद्र कश्यप, डाॅक्टर राजू सोम, रोमेस कश्यप, डारविन कश्यप, नवल कश्यप, श्रद्धा सोम, रीतु सूर्यवंशी, गीता देवी, वंदना कश्यप ने स्वागत किया। बताया गया है कि योग गुरु स्वामी विश्वज्योति सरस्वती के शिष्य जापान, व स्वीटजरलैंड, इंग्लैंड तक है। योग शिक्षा के क्षेत्र में इन्होंने पूरे देश में अलग पहचान बनाई है। कुछ दिन नगरी में छोटे भाई गोविंद कश्यप के निवास में रहने के बाद अपने आश्रम वापस लौट जाएंगे।
(Udaipur Kiran) / रोशन सिन्हा