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सर्जन डॉ ओम महेंद्रु ने कोविड की महामारी के चित्रण करके की थी शुरुआत, अब तक बना चुके हैं 150 पेटिंग्स

डॉ ओम महेंदू्र

मंडी, 30 अक्टूबर (Udaipur Kiran) । हिमाचल सरकार की नौकरी करते हुए और फिर उसके बाद विभिन्न स्तरों व संस्थानों में काम करते हुए मंडी के प्रख्यात सर्जन डॉक्टर ओपी महेंद्रु ने न जाने कितने मरीजों की सर्जरी करके उनको जीवनदान दे चुके हैं। वह प्रदेश के कई अस्पतालों में कार्यरत रहे और 2005 में सेवानिवृत भी हो गए। उसके बाद भी वह कई संस्थानों व क्लीनिक में काम करते रहे मगर कोविड काल में जब आईआईटी मंडी में अपनी सेवाएं एक चिकित्सक के तौर पर दे रहे थे तो दुनिया भर में आई इस डरावनी बीमारी को लेकर उनके मन एक कल्पना ने ऐसा जन्म लिया कि सर्जरी करने वालेे हाथों ने ब्रश थाम लियाए चीरफाड़ से उल्ट रंगों को अपना साथी बनाते हुए एकरेलिक शीट्स पर चित्र बनाने शुरू कर दिए।

मंडी में दो दिन का इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का राज्य स्तरीय सम्मेलन हुआ तो उन्होंने संस्कृति सदन में अपने बनाए 101 चित्रों की प्रदर्शनी लगा दी। इस सम्मेलन में राज्य ही नहीं बाहर से भी चिकित्सक आए हुए थे तो एक सर्जन की इस चित्रकला को देखकर हतप्रभ रह गए। हतप्रभ होना ही था क्योंकि एक चिकित्सक जब रिटायरमेंट के 19 साल बाद पूरी तरह से चिकित्सा क्षेत्र से हटकर कला के क्षेत्र में आकर बेहतरीन चित्र बना रहा हो तो यह अपने आप में हैरानीजनक था। उन्हें इस दौरान दर्शकों की खूब तारीफें मिली।

इसी दौरान एक भेंट में डॉ ओम महेंद्रु ने बताया कि कोविड काल में उसने कोविड की विभिषिका को एक काली रात के दौरान समुद्र में फंसे ऐसे जहाज की तरह देखा जो समुद्र की खौफनाक लहरों से निकलने की कोशिश कर रहा था। शौक तो वह पहले से ही रखते थेए स्कूल टाइम में चित्रकला के प्रति उनका काफी लगाव थाए मगर चिकित्सा क्षेत्र में रहते हुए सब भूल गए थे मगर फिर भी अपने इस विचार को उन्होंने रंगए ब्रश और केनवास के जरिए रात 7 बजे से शुरू करके सुबह 7 बजे तक यानी 12 घंटों में तैयार कर मूर्तरूप दे दिया। उनके इस चित्र को खूब वाह वाही मिली तो फिर उनके हाथ जब भी समय मिलता केनवास पर चलने लगे और अब तक वह 150 चित्र तैयार कर चुके हैं जो कई विषयों से जुड़े हुए हैं। प्रदेश के प्रख्यात लेखक साहित्यकार डॉ. गंगा राम राजी की एक राजा संसार चंद की प्रेम एवं नोखू गद्दण की विरह गाथा एमेरो दर्द न जाणै कोयए पुस्तक पर भी उनके द्वारा बनाया गया चित्र मुख पृष्ठ पर प्रकाशक द्वारा लगाया गया है।

उन्होंने बताया कि वह अपनी प्रदर्शनी के माध्यम से पूरे प्रदेश व बाहर से आए चिकित्सकों को यह बताना चाहते थे कि एक डॉक्टर महज उपचार ही नहीं कर सकता उसके अंदर एक कलाकार भी हो सकता है। अपनी इच्छाओं को जाहिर कर ही देना चाहिएए इन्हें दबाना नहीं चाहिए। उन्होंने भी ऐसा ही किया और अब वह 77 साल के हो गए हैं मगर उनके अंदर एक कलाकार अभी भी जवान है जो जिंदगी की आखिरी सांस तक रहेगा।

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(Udaipur Kiran) / मुरारी शर्मा

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