
नई दिल्ली, 06 मार्च (Udaipur Kiran) । सुप्रीम कोर्ट ने मनी लांड्रिंग मामले में ईडी की शक्तियों को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई टाल दिया है। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस पर तीन जजों की बेंच को सुनवाई करनी थी, लेकिन ये मामला गलती से दो जजों की बेंच के पास लिस्ट हो गया है। इस मामले की अगली सुनवाई अप्रैल अंत के पहले होगी।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले की सुनवाई टालने की मांग करते हुए अप्रैल अंत या मई की शुरुआत में करने की मांग की। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले को तीन जजों की बेंच को सुनवाई करनी चाहिए। इसके पहले सुनवाई के दौरान सिब्बल ने कहा था कि जुलाई, 2022 के आदेश में कई गलतियां हैं, जिन पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। जस्टिस उज्ज्वल भूईयां ने कहा था कि कोर्ट ने जिन दो मसलों की पहचान की थी, उन पर विचार करने की जरूरत है। जस्टिस सीटी रविकुमार ने कहा था कि कोर्ट को ये सुनिश्चित करना होगा कि पुनर्विचार याचिका अपील का शक्ल न ले ले। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई गड़बड़ी नहीं है। पुनर्विचार याचिका दायर करनेवालों में कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 24 अगस्त, 2022 को पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई करने का आदेश दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई, 2022 को अपने फैसले में ईडी की शक्ति और गिरफ्तारी के अधिकार को बहाल रखने का आदेश दिया था। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत ईडी को मिले विशेषधिकारों को बरकरार रखा था। कोर्ट ने पूछताछ के लिए गवाहों, आरोपियों को समन, संपत्ति जब्त करने, छापा डालने, गिरफ्तार करने और ज़मानत की सख्त शर्तों को बरकरार रखा था। कोर्ट ने कहा था कि मनी लांड्रिंग एक्ट में किए गए संशोधन को वित्त विधेयक की तरह पारित करने के खिलाफ मामले पर बड़ी बेंच फैसला करेगी।
कोर्ट ने कहा था कि मनी लांड्रिंग एक्ट की धारा 3 का दायरा बड़ा है। धारा 5 संवैधानिक रूप से वैध है। धारा 19 और 44 को चुनौती देने की दलीलें दमदार नहीं हैं। ईसीआईआर एफआईआर की तरह नहीं है और यह ईडी का आंतरिक दस्तावेज है। एफआईआर दर्ज नहीं होने पर भी संपत्ति को जब्त करने से रोका नहीं जा सकता है। एफआईआर की तरह ईसीआईआर आरोपित को उपलब्ध कराना बाध्यता नहीं है। हालांकि, आरोपित स्पेशल कोर्ट के समक्ष दस्तावेज की मांग कर सकता है।
(Udaipur Kiran) /संजय———–
(Udaipur Kiran) / सुनीत निगम
